Lucknow News: अवध के तीसरे नवाब मुहम्मद अली शाह 8 जुलाई 1837 में तख्ते सल्तनत पर बैठे। मुहम्मद अली शाह ने कई खूबसूरत इमारतें बनवाई थीं। वह एक ऐसी इमारत बनवाना चाहते थे, जो विश्व के अजूबे में शामिल हो जाए और उस इमारत से पूरे लखनऊ का खूबसूरत नजारा लिया जा सके। इसके लिए उन्होंने तमाम आर्किटैक्ट बुलाए और सात खंडों की एक ऐसी सुंदर इमारत बनाने का फैसला किया, जो पूरी दुनिया में कही न हो। सभी ने मिलकर इस इमारत का नाम दिया सतखंडा। यह इमारत सन् 1841 से बनना शुरु हुई और सन् 1842 तक इसके चार खंड बनकर तैयार हो गए।
सतखंडा की अनूठी स्थापत्य कला
सतखंडा का निर्माण यूनानी और इस्लामी वास्तुकला का मिश्रण था। इसकी सुंदरता प्रत्येक तल पर इसके कोण और मेहराबों की संरचना बदलना है। सतखंडा का हर तल अपने नीचे वाले तल से छोटा होता चला गया है और इसके तलों पर जाने के लिए घुमावदार सर्पाकार सीढ़ियां हैं। पहले तल पर 20 दरवाजे हैं और ऊपर जाकर यह 24 दरवाजे में तब्दील हो जाते हैं। स्थापत्य कला के मामले में यह इमारत काफी खूबसूरत है, जिसे देखते ही लोग मुग्ध हो जाते हैं। मुहम्मद अली शाह ने इसके निर्माण में काफी दिलचस्पी ली और देश के बड़े-बड़े शिल्पकार इसके निर्माण में लगाए।
नवाब मुहम्मद अली शाह का अधूरा रह गया सतखंडा निर्माण का ख्वाब
इसी दौरान नवाब की बेटी की मौत हो गई और मुहम्मद अली शाह बहुत दुखी रहने लगे। एक दिन नवाब सतखंडा इमारत के निर्माण को देखने पहुंचे और सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त उनके पैर में चोट लग गई, जिसके कारण वह कई दिन चल-फिर नहीं पाए। इसके कुछ दिनों बाद वह 16 मई 1842 में दुनिया से चल बसे और अपने सपनों की इमारत सतखंडा को अधूरा ही छोड़कर चले गए।
मनहूस बनकर रह गई अवध की खूबसूरत इमारत सतखंडा
इसके बाद गद्दी पर बैठने वाले अवध के नवाबों ने इस इमारत की ओर देखा तक नहीं, क्योंकि उन्होंने यह मान लिया कि यह इमारत बेहद मनहूस है, जिसके निर्माण के दौरान नवाब मोहम्मद अली शाह का निधन हो गया। इसके बाद इस इमारत पर ताला डाल दिया गया, जो आज भी पर्यटकों के लिए बंद है और यह मान लिया गया कि इस इमारत का निर्माण कराने वाले की मौत हो जाती है। अनूठी स्थापत्य कला वाली सतखंडा जैसी सुंदर इमारत लखनऊ के चौक इलाके में स्थित है, पास में ही घंटाघर है और एक सीढ़ीनुमा सुंदर तालाब भी। यहां आने के बाद पर्यटक नवाबों के शहर की खुबसूरती में डुबे जाता है।