Khan Bahadur Khan: आज हम बरेली जनपद के एक ऐसे क्रांतिकारी की बात कर रहे हैं, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को घुटने के बल ला दिया था, लेकिन आज वह गुमनामी के दौर से गुजर रहा है. रुहेलखंड मंडल को 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से एक वर्ष तक आजाद कराने वाले योद्धा खान बहादुर खान थे, जिन्होंने खुद अपनी सेना बनाकर अंग्रेजों को नैनीताल तक खदेड़ दिया था और 31 मई 1857 को रुहेलखंड को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त करा दिया था. खान बहादुर खान अंग्रेजों की कोर्ट में जज के पद पर कार्यरत थे, लेकिन उनके मन में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी. अंग्रेज उन पर पूरा विश्वास भी करते थे. इसी विश्वास का फायदा उठाकर उन्होंने धीरे-धीरे गोपनीय तरीके से पैदल सेना तैयार कर ली. 1857 की क्रांति में बरेली के तमाम सैनिक अंग्रेजों ने अन्य स्थानों पर क्रांति को रोकने के लिए भेज दिए.
इसी का फायदा उठाते हुए खान बहादुर खान ने अपनी पैदल सेना के बल पर अंग्रेजों से लड़कर उनको परास्त कर दिया और रुहेलखंड को 31 मई 1857 को अंग्रेजों से आजाद करा दिया. बरेली में तैनात अंग्रेज अधिकारियों और सैनिकों ने नैनीताल में शरण ली और लगाार रुहेलखंड में समय-समय पर हमला करते रहे, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके. खान बहादुर खान लगभग एक वर्ष तक रुहेलखंड को अंग्रेजों से आजाद रखने में सफल रहे. 6 मई 19 58 को अंग्रेजों ने एक बड़ी सेना के साथ बरेली पर हमला बोल दिया, जिसमें खान बहादुर खान पराजित हो गए और वह किसी तरह अंग्रेजों से बचकर नेपाल भाग निकले.
नेपाल के राजा राणा जंगबहादुर ने धोखे से उनको अपने पास बुलाकर अंग्रेजों के हवाले कर दिया. खान बहादुर खान पर बरेली में मुकदमा चलाया गया और उन्हें जेल में रहने के दौरान तमाम यातनाएं भी दी गई. 22 फरवरी 1860 को बरेली के कमिश्नर रार्बट ने खान बहादुर खान को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुना दी और 24 मार्च 1860 को आजादी के दीवाने खान बहादुर खान को बरेली कोतवाली के गेट पर सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई. अंग्रेजों का अत्याचार इस कदर था कि खान बहादुर खान को बेड़ियों के साथ ही फांसी पर लटकाया गया और इस क्रांतिकारी की मौत के बाद बरेली जिला जेल में बेड़ियों के साथ ही दफना दिया गया.
खान बहादुर खान की मज़ार जेल की दीवारों में कैद हो गई. सन 2007 में तत्कालीन सरकार ने खान बहादुर खान की मज़ार को जेल से बाहर निकालने के लिए जेल की दीवार को पीछे किया, जिससे इस वीर क्रांतिकारी की मज़ार जेल से बाहर आ गई, जिससे लोग रुहेलखंड को आजादी दिलाने वाले इस बहादुर क्रांतिकारी की मज़ार पर नमन कर सके, लेकिन अफसोस की बात है कि इस मज़ार पर अक्सर सन्नाटा पसरा रहता है और सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन जिला प्रशासन की ओर से जरूर कार्यक्रम का आयोजन हो जाता है. नगर निगम बरेली भी इसी जेल के पास खान बहादुर खान की वीरता से संबंधित लाइट एंड साउंड प्रोग्राम प्रतिदिन शाम को आयोजित करता है, लेकिन इस कार्यक्रम में भी लोगों की संख्या काफी कम रहती है.