सनातन धर्म में क्यों नहीं होती एक ही गोत्र में शादी? जानिए वजह
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से एक है विवाह संस्कार. जिसमें कई रस्में और प्रथाएं बहुत खास होती हैं.
विवाह के लिए कुंडली मिलान में गोत्र अवश्य देखा जाता है जो दांपत्य जीवन को सुखी बनाने के लिए अति आवश्यक मानी जाता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुछ गोत्रों में शादी करना मना है. आइए जानते हैं कि इसके पीछे क्या कारण होता है.
विवाह निश्चित करते समय गोत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना जरूरी है.
गोत्र का संबंध रक्त से होता है जबकि प्रवर का संबंध आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है.
शादी के समय तीन गोत्र छोड़े जाते हैं. पहला माता, दूसरा पिता और तीसरा दादी का गोत्र. बाकी किसी भी गोत्र में विवाह किया जा सकता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लड़का-लड़की का एक ही गोत्र होने का मतलब है कि वो भाई-बहन हैं.
मान्यताओं के अनुसार, यदि लड़का-लड़की एक ही गोत्र में शादी करते हैं तो उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
एक ही गोत्र में विवाह करने से दंपति के यहां होने वाली संतान में मानसिक और शारीरिक विकृति हो सकती है.
विज्ञान के अनुसार, एक ही गोत्र या कुल में शादी करने पर दंपती की संतान में आनुवांशिक दोष हो सकते हैं.
ऐसे दंपती की संतानों में एक-सी विचारधारा होती है, कुछ नयापन देखने को नहीं मिलता.
गौतम धर्म सूत्र में भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है. यानी समान प्रवर या गोत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)