भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए क्यों किया मकर संक्रांति तक इंतजार, जानिए 

हिंदू धर्म में पूरे साल कई पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं, जिनसे खास महत्व जुड़ा होता है. इन्हीं विशेष त्योहारों में एक है 'मकर संक्रांति' का पर्व.

ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति पर सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं. इसलिए इसे उत्तरायण और मकर संक्रांति कहा जाता है. 

शास्त्रों में उत्तरायण के दिन को बहुत शुभ माना गया है. इस दिन गंगा स्नान, दान, पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. वहीं उत्तरायण पर प्राण त्यागने वाले मोक्ष को प्राप्त करते हैं.

महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों की ओर से लड़ रहे थे. इस दौरान अर्जुन के बाणों से घायल होकर वे वीरगति को प्राप्त हुए.

भीष्म पितामह की इच्छा थी कि वो ऐसे समय में अपने प्राण का त्याग करें, जब सूर्य उत्तरायण हो, लेकिन जब वे अर्जुन के बाणों से घायल हुए उस समय सूर्य दक्षिणायन में थे.

ऐसे में सूर्य के उत्तरायण होने के लिए भीष्म पितामह को बाणों से बिंधे होने के बावजूद भी 58 दिनों तक इंतजार करना पड़ा.

भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. इसलिए वे जब और जिस दिन चाहे अपने प्राण त्याग सकते थे.

यही कारण है कि भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों से बिंधे हुए व शरशय्या पर अपने जीवन के एक-एक सांस को तोलते हुए सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायाण होने का इंताजर करते रहे.

मकर संक्रांति के दिन जैसे ही सूर्य उत्तरायण हुआ, उन्होंने आकाश की ओर देखते हुए अपने प्राण त्याग दिए.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)