Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री विष्णु महापुराण की क्या विशेषता है?
(क) श्रीविष्णु महापुराण अठारह पुराणों में परम सात्विक पुराण है। अठारह पुराण हैं वे तीन प्रकार के हैं। छःसात्विक, छः राजस, छःतामस हैं. सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण तीन गुणों से युक्त होने के कारण पुराण भी त्रिगुणात्मक है।
(ख) वैष्णव भक्ति का मूल सिद्धांत भी श्री विष्णु महापुराण में ही वर्णित है। हम सभी वैष्णव हैं, राम कृष्ण नारायण के उपासक हैं। विष्णु महापुराण में वैष्णव धर्म का निरूपण और भगवान विष्णु को परमतत्व के रूप में बताया गया है।
(ग) अन्य पुराण में अन्य देवों को परम तत्व बताया गया है। निर्णय कैसे हो कि परम तत्व कौन है? तो कहते हैं इसका ज्ञान, सात्विक ज्ञान के द्वारा होता है। सत्वगुण का परिणाम ही ज्ञान है। इसीलिए गीता में भगवान ने कहा- ” सत्वात् संजायते ज्ञानं ” जब हमारे अंदर सात्विकता बढ़ेगी तब ही शुद्ध ज्ञान होगा। सतोगुण को प्रकट करने के लिए सात्विक आहार, बिहार, विचार, शास्त्र सब सात्विक सेवन करना चाहिए।
(घ) आराधना तीन प्रकार की है। तमोगुणी आराधना करने पर तमोगुण बढ़ता है। श्री विष्णु महापुराण में भगवान व्यास कहते हैं जो मुमुक्षु प्राणी है जो संसार के आवागमन से मुक्ति चाहते हैं। ऐसे मनुष्य क्या करें? तो भगवान व्यास कहते हैं हित्वा भूत पतीनथ्। भूत, प्रेत, बेताल, अगिया बेताल की आराधना छोड़कर ‘ नारायण कला शान्ताः’ भगवान राम, कृष्ण, नृसिंह, बामन इत्यादि परम सत्य भगवान की आराधना करते हैं।
(ङ) रजोगुण तमोगुण के रहने पर हमारा ज्ञान संशयात्मक होता है, निश्चयात्मक नहीं होता है। ज्ञान तो सबके अंदर कुछ न कुछ होता है।लेकिन निर्णयात्मक ज्ञान, भ्रांति रहित जब हमारे अंदर सात्विकता होती है, तभी होता है।