SC-ST Quota: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एससी/एसटी आरक्षण मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. कोर्ट ने कहा, राज्यों में दोनों ही समुदायों के आरक्षण के वर्गीकरण का अधिकार राज्यों को नहीं हैं. अगर ऐसा होता है, तो राज्य तुष्टिकरण को बढ़ावा देंगे. बता दें, कोर्ट 2004 में दिए गए अपने फैसले की समीक्षा पर सुनवाई कर रहा था. मामले की सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पकंज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की संविधान पीठ में हुई
सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं लंबित
चिन्नैया के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एसीस एसटी आरक्षण में राज्य सरकार को उपवर्गीकरण करने का अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें एससी-एसटी आरक्षण में उप वर्गीकरण का मुद्दा उठाया गया है. मुख्य मामला पंजाब का है. जिसमें पंजाब सरकार 2006 में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) कानून 2006 लाई थी. इस कानून में पंजाब में एससी वर्ग को मिलने वाले कुल आरक्षण में से 50 फीसद सीटें और पहली प्राथमिकता वाल्मीकि और मजहबियों (मजहबी सिख) के लिए तय कर दी गईं थीं.
चीफ जस्टिस ने क्या कुछ कहा
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम सिर्फ वाल्मीकियों का उदाहरण दे रहे हैं स्थिति इससे उलट भी हो सकती है. कहने का मतलब यह है कि जिन लोगों को बाहर रखा गया है वे हमेशा अपने वर्गीकरण को अनुच्छेद 14 में समानता के आधार पर चुनौती दे सकते हैं, लेकिन राज्य जवाब में कह कर सकता है कि हम पिछड़ेपन के विस्तार को देखकर जाति का वर्गीकरण कर सकते हैं.
जैसा कि जस्टिस गवई ने कहा, चीफ जस्टिस ने कहा सबसे पिछड़ों को लाभ देना चाहते हैं, लेकिन सबसे पिछड़ों को लाभ देकर आप यह नहीं कर सकते कि जो सबसे पिछड़े हैं उनमें से कुछ को ही लाभ दिया जाए और अन्य को छोड़ दिया जाए. अन्यथा यह तुष्टीकरण की एक खतरनाक प्रवृत्ति बन जाती है. ऐसे तो कुछ राज्य कुछ जातियों को चुनेंगे, अन्य दूसरी जाति को चुनेंगे। आइडिया यह है कि आरक्षण में राजनीति न होने दी जाए. चीफ जस्टिस ने कहा,
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