Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, यह जगत भी परमात्मा का रूप है। यही वैष्णव सिद्धांत है। जो जगत का कर्ता भी है और स्वयं जगत का रूप भी है। ये सारा जगत भगवान का ही रूप है। भगवान का पहला नाम विश्व है। आप कहेंगे विश्व अर्थात् दुनियां होता है, विश्व अर्थात् संसार होता है, लेकिन विश्व भगवान का नाम है। भगवान का सबसे पहला नाम है विश्व। पहले भगवान विश्व के रूप में प्रकट होते हैं, यह भगवान का रूप है इसलिए भगवान विष्णु के हजार नाम में सबसे पहला नाम विश्व ही लिया गया है।
पितामह भीष्म ने शरशैय्या पर लेटे हुये भगवान के हजार नाम का उच्चारण किया है। जब पितामह अपना शरीर त्याग करना चाहते थे, सूर्य उत्तरायण हो गये, इसी समय भगवान श्री कृष्ण पांडवों को लेकर उनके समीप पहुंचे, युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से अनेक प्रश्न किये, धर्मनीति, राजनीति, अर्थनीति, दंडनीति, तब पितामह भीष्म ने उन सबका उत्तर दिया।
उसी समय युधिष्ठिर ने प्रश्न किया है। को धर्मो सर्वधर्मणां धर्मोऽधिक तमोमतः। हे पितामह आप तो धर्म के वेत्ता हो, सब धर्मों में श्रेष्ठ,और अधिकतम धर्म क्या है? ‘धर्मोऽधिकतमोमतः’ तो भीष्म पितामह ने शरशैय्या पर लेटे हुये कहा- एष मे सर्वधर्माणां धर्मोऽधिक तमोमतः। यद् भक्त्या पुण्डरीकाक्षं सवैरऽचर्न नर सदा।।
भीष्म पितामह ने कहा मेरे मत में सर्वश्रेष्ठ धर्म यही है कि भगवान की आराधना करो। भगवान का स्तवन करो। भगवान का नाम लो, भगवान के चरणों का ध्यान करो, यही सबसे बड़ा धर्म है। भक्तों के लिए इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है। सबसे बड़ा धर्म भगवान के चरणों की भक्ति है।