What is Electoral Bonds scheme: आज सुबह से ही इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लेकर चर्चा की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई भी हुई और शीर्ष न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि देश के मतदाताओं को पॉलिटिकल पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है. कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट को सार्वजनिक करना होगा, इससे पारदर्शिता आएगी. देश के नागरिकोंं को यह जानने का हक है कि सरकार के पास कहां से पैसा आ रहा है और कहां जा रहा है.
इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. आइए आपको इस ऑर्टिकल में बताते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है और इसकी शुरुआत कब हुई थी. इस पर विवाद कैसे इतना बढ़ा जो सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा.
जानिए क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
इंटरनेट पर मिली जानकारी के अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का वचन पत्र है, इसके जरिए पॉलिटिकल पार्टियों को चंदा दिया जाता है. यह बॉन्ड देश का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकती है. वहीं, इस बॉन्ड से नागरिक या कंपनी अपने पसंदीदा राजनीतिक दल को चंदा दे सकता है. इस बॉन्ड से जो भी चंदा दे रहा है उसका नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है.
कितने का बॉन्ड खरीद सकता है नागरिक
आपको बता दें कि भारत सरकार ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी. वहीं, जनवरी 2018 से इसे लागू कर दिया गया था. इस तरह SBI राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए बॉन्ड जारी करता है. इस बॉन्ड के जरिए कोई भी नागरिक 1 हजार, 10 हजार, एक लाख रुपए से लेकर 1 करोड़ तक की राशि का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है और अपने पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को चंदा दे सकता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड की होती है वैलिडिटी
खास बात यह है कि यह बॉन्ड केवल 15 दिनों के लिए वैलिड होता है. इसी अवधि में खरीदे गए बॉन्ड का प्रयोग किया जा सकता है. वहीं, इस बॉन्ड से चंदा देने के भी अपने नियम हैं. इस इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को चंदा दिया जा सकता है जिसे चुनाव आयोग की ओर से मान्यता मिली हो. इतना ही नहीं उस राजनीतिक दल ने विधानसभा या लोकसभा चुनाव में डाले गए मतों का न्यूनतम एक फीसदी वोट हासिल किया हो.
2018 में जब सरकार ने इस इलेक्ट्रोरल बॉन्ड की शुरुआत की तो कहा था कि इसके जरिए देश में राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था बनेगी. हालांकि आगे चलकर यह बॉन्ड सवालों के घेरे में आने लगा. इस पर सवाल उठने लगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की मदद से चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी जाएगी, लेकिन इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है.
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