Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवताऽयं भागवतं= भागवत और भगवान में रंच मात्र अंतर नहीं है. हम जीवों के कल्याण के लिए भगवान ही भागवत के रूप में प्रकट हुए हैं. भागवत की पूजा करने से भगवान श्री राधा-कृष्ण की पूजा करने का फल मिल जाता है. भागवत की परिक्रमा, प्रणाम, श्रवण, दर्शन करने से भगवान को श्रवण, बंदन, परिक्रमा का फल सहज ही प्राप्त हो जाता है.
भारतीय संस्कृति की यह आर्ष परंपरा है कि यहां लोग धर्म शास्त्रों को पुस्तक नहीं, भगवान का वांगमय स्वरूप मानते हैं. रामायण भगवान श्री सीताराम जी का वांगमय स्वरूप है, भागवत श्रीराधा-कृष्ण का वांगमय स्वरूप है. राजा परीक्षित भागवत सुनने के बाद श्री शुकदेव जी से यह नहीं कहते कि हमने आपसे भागवत सुना है, महाराज परीक्षित कहते हैं, आपसे हमने भगवान को सुना है. कथा के माध्यम से भगवान राधा-कृष्ण श्रोता के हृदय में विराजमान हो जाते हैं.
श्रीमद् भागवत कथा से पितरों को जैसी प्रसन्नता होती है, वैसे दूसरे किसी भी साधन से नहीं होती. इसलिए पितरों की प्रसन्नता, पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए भागवत अवश्य सुनना चाहिए. श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने से जीवन में ज्ञान और वैराग्य की प्रतिष्ठा होती है, ज्ञान और वैराग्य पुष्ट होते हैं. हमारे जीवन में भगवान की भक्ति बनी रहे, इसके लिए भागवत अवश्य सुनना चाहिए. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर(राजस्थान).
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