Mahakal Bhasma Aarti: विश्वभर में भगवान भोलेनाथ की नगरी उज्जैन बहुत प्रसिद्ध है. देवों के देव महादेव के लाखों भक्त हैं. देश के कोने-कोने में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं. जिसमें से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से व्यक्ति के जीवन-मृत्यु का चक्र खत्म हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां भगवान शिव की भस्म आरती की परंपरा है. जिसे देखने लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोलेनाथ का श्रृंगार भस्म से क्यों किया जाता है और भस्म आरती क्यों की जाती है? आइए जानते हैं भस्म आरती की क्या परंपरा है…
इसलिए की जाती है महाकाल की भस्म आरती
मान्यताओं के अनुसार एक दूषण नाम के राक्षस ने उज्जैन नगरी में तबाही मचा रखी थी. वहां के ब्राह्मण उसके प्रकोप से काफी परेशान हो गए थे. तब सभी ब्राह्मण भोलेनाथ के पास अपने समस्या लेकर पहुंचे और राक्षस की तबाही से बचाने के लिए भगवान शिव से विनती करने लगे. भगवान शिव ने उनकी समस्याएं सुनी और उनकी प्रार्थना को स्वीकर किया. भगवान शिव राक्षस दूषण के पास गए और तबाही रोकने को कहा, लेकिन राक्षस नहीं रुका. क्रोधित होकर भगवान शिव ने दूषण को भस्म कर दिया और उसके भस्म को अपने शरीर पर लगाया. इसके बाद से ही भोलेनाथ का श्रृंगार भस्म से किया जाता है.
अब ऐसे तैयार की जाती है भस्म
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज से कई वर्ष पहले महादेव की आरती के लिए श्मशान घाट से भस्म लाई जाती थी. आज जिस जगह पर महाकाल मंदिर स्थापित है वहां श्मशान हुआ करता था, लेकिन अनुष्ठान पद्धति भी समय के साथ बदल गई. आज भगवान शिव की भस्म आरती के लिए भस्म चिता की राख से नहीं, बल्कि कपिया गाय का गोबर, पीपल, पलाश की लकड़ी, बेर की लकड़ी, शमी और अमलतास को जलाकर तैयार किया जाता है. महाकालेश्वर मंदिर में दिन में 6 बार आरती की जाती है. भस्म आरती के बाद भस्म को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)