Jaya Ekadashi 2024: जया एकादशी कल, इस दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, कष्ट और पापों से मिलेगी मुक्ति

Raginee Rai
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Jaya Ekadashi 2024 Puja: सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्‍व है. हर साल में 24 एकादशी पड़ती हैं और हर एकादशी महत्‍वपूर्ण मानी जाती है. एकादशी भगवान विष्‍णु को समर्पित है इस दिन प्रभु नारायण की पूजा-अराधना और व्रत करने का विधान है. माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है. जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु के “उपेंद्र” स्वरूप की पूजा की जाती है. मान्‍यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाए तो घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और पापों से मुक्ति मिलती है.

20 फरवरी को जया एकादशी

पंचांग के अनुसार इस साल जया एकादशी की तिथि 19 फरवरी की सुबह 8 बजकर 49 मिनट से शुरू होगी और इस तिथि का समापन 20 फरवरी की सुबह 9 बजकर 55 मिनट पर हो जाएगा. उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए जया एकादशी का व्रत 20 फरवरी को रखा जाएगा और इसी दिन पूजा भी की जाएगी. पौराणिक कथा में इसका महत्व बताया गया है. जया एकादशी के दिन कथा का पढ़ना या श्रवण करना शुभ फलदायी है. .

जया एकादशी की व्रत कथा 

एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब चिरकाल में इंद्र की सभा में नंदन वन में एक उत्सव का आयोजन किया गया है. इस उत्सव में स्वर्ग के सभी देवगण, सिद्धगण और मुनि आदि मौजूद हुए थे. उस समय गंधर्व गायन और गंधर्व कन्‍याएं नृत्य कर रही थी. इन्हीं गंधर्वों में एक गंधर्व माल्यवान था, जो बहुत ही सुरीला गा रहा था. माल्‍यवान बहुत ही रूपवान था. इसी समूह में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी. पुष्‍यवती की दृष्टि माल्‍यवान पर पड़ गई और वह उसको देखकर मोहित हो गई. माल्‍यवान भी उस गंधव्र कन्‍या को देखकर सुध बुध खो दिया. दोनों अपनी लय-ताल से भटक गए. पुष्‍यवती अमर्यादित ढंग से नृत्य करने लगी. और माल्यवान भी बेसुरा गाना गाना शुरू कर दिया.

इस घटना को देख-सुन सभी क्रोधित होने लगे. स्वर्ग के राजा इंद्र देव ने क्रोधित होकर दोनों को स्वर्गलोक से वंचित कर दिया. साथ ही दोनों को श्राप दिया कि दोनों को अधम योनि प्राप्त होगी. श्राप के प्रकोप से दोनों प्रेत योनि में चले गए. दोनों हिमालय में पिशाच योनि में कष्टदारी जीवन व्यतीत करने लगे.

बहुत साल बाद माघ मास की एकादशी यानी जया एकादशी के दिन माल्यवान और पुष्यवती ने कुछ नहीं खाया और दिन में एक बार फलाहार किया था. इसके बाद रातभर जागरण किया और भगवान नारायण का स्मरण किया. इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होकर दोनों को प्रेत योनि से मुक्त कर दिए. वे दोनों पुन: स्‍वर्ग लोक चले गए. अंजाने में ही सही लेकिन उन्‍होंने जया एकादशी का व्रत किया. इसके बाद से ही भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और जीवन के कष्टों से मुक्ति के लिए जया एकादशी का व्रत रखा जाने लगा.

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