Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सुख और दुःख एक दूसरे के प्रतिबिम्ब हैं. सुख की खोज में जाने वाले व्यक्ति के घर पर दुःख बिना बुलाए आता है और दूसरों को सुख पहुंचाने के लिए स्वयं को दुःख में होम देने वाले व्यक्ति को जीवन का सच्चा सुख अनायास ही प्राप्त हो जाता है. कुएं पर चलने वाली रँहट की तरह सुख-दुःख की धूप-छांव भी मानव-जीवन में आती-जाती रहती है.
इसीलिए संत महापुरुष कहते हैं, सांसारिक सुख के पीछे भटकने के बजाय आन्तरिक सुख प्राप्त करने का प्रयास करो, क्योंकि वही सच्ची शान्ति प्रदान कर सकता है, जबकि संसार का सुख तो अशान्ति की आग प्रज्वलित करता है. सच्चे सुख को प्राप्त करने के लिए बाहर भटकना व्यर्थ है. वह तो अंदर से ही प्राप्त होगा. आन्तरिक आनन्द ही शाश्वत है. बाहर का आनन्द तो एक घड़ी के बाद ही दारूण दुःख में परिणत हो जाता है.
सांसारिक विषय वासनाओं में आनन्द ढूंढने वाले अन्त में अत्यन्त दुःखी हो जाते हैं, क्योंकि उसके पीछे भोग की भूख होती है और भोग की बुभुक्षा ही सबसे बड़ा दुःख है. प्रेम उन्नत करता है, काम अधोगति में ले जाता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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