एक ऐसा मंदिर, जहां रोगों से बचने के लिए मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की होती है पूजा! जानिए मान्यता

Abhinav Tripathi
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Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Chaitra Navaratri, विवेक रजौरिया/ झांसी: चैत्र नवरात्रि की शुरुआत कल यानी 09 अप्रैल से हो रही है. नवरात्रि को लेकर मां दुर्गा के सभी दरबार सज गए हैं. नवरात्रि के आने के साथ ही देश के अनेक मां दुर्गा के मंदिरों के बारे में बात होने लगती है. ऐसे में ही एक ऐेसे मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसकी मान्यता काफी अलग है. कहा जाता है कि मां दुर्गा के इस मंदिर में भक्त काफी श्रद्धा के साथ आते है. माता के दर्शन के साथ ही उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है.

दरअसल, हम बात कर रहे हैं, पंचकुइयां माता मंदिर की. ये मंदिर झांसी में स्थित है. कहा जाता है कि इस मंदिर में पंचकुइयां माता का ऐसा सिद्ध मंदिर है, जहां आस्था और भक्ति के साथ-साथ लोग खुद का इलाज भी करवाने आते हैं. आइए आपको इस मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के बारे में आपको बताते हैं.

बताया जाता है कि बुंदेलखंड का यह एक मात्र मंदिर है, जहां पर अलग-अलग बीमारियों के उपचार के लिए अलग-अलग देवियों की स्थापना की गई है. इनके छोटे-छोटे मंदिर भी परिसर में ही स्थित हैं. यहां हर बीमारी से संबंधित पूजा पद्धति भी अलग-अलग है. इसके वैज्ञानिक आधार के बारे में तो नहीं कहा जा सकता पर, धार्मिक आस्था के अनुसार सैकड़ों लोग यहां आकर संबंधित बीमारी की पूजा करवाते हैं. इनमें बड़ी चेचक, छोटी चेचक, मोतीझरा, फलक बराई जैसी बीमारियों के अलावा बच्चों की बीमारियों का निदान पूजा करके व जल पिलाकर होता है. जब झांसी में मराठा शासन आया तब महारानी लक्ष्मीबाई किले की तलहटी में स्थित इस मंदिर में प्रतिदिन पूजा अर्चना करने आती थीं.

पंचकुइयां माता मंदिर के बारे में जानिए

मीडिया से बात करते हुए मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि चंदेलकाल में इस स्थान पर एक छोटे से मंदिर में शीतला माता और संकटा माता की प्रतिमा स्थापित थीं, बाद में सोलहवी शताब्दी में ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव ने जब झांसी के किले का निर्माण करवाया उस समय इस मंदिर को भव्य बनाया गया. इस मंदिर की विशेषता यह है कि देवीजी की प्रतिमाएं दक्षिण मुखी हैं. बाद में झांसी में मराठा शासन आने पर महारानी लक्ष्मीबाई भी मंदिर पर आकर प्रतिदिन पूजा अर्चना करती थीं. इन्हें नगर भवानी के रूप में भी जाना जाता है अर्थात कुलदेवी के रूप में भी इन्हें पूजा जाता है. शहर के नागरिक शादी समारोह की पूजा करने यहीं पर आते हैं.

अलग बीमारियों के लिए अलग-अलग देवियों की पूजा

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मंदिर के परिसर में स्थित मंदिरों में मुख्य दरबार शीतला माता और संकटा माता का है. इस दरबार का जल पिलाने से बच्चों की बीमारियां ठीक हो जाती हैं. इसी तरह मोतीझरा के लिए मोतीझरा की माता पर पालक की भाजी चढ़ाकर पूजा की जाती है, बोदरी माता पर खसरा का इलाज सफेद कागज पर पालक चढ़ाकर, खोखो माता पर खांसी का इलाज सफेद कागज पर पांच तरह की मिठाई चढ़ाई जाती है. खिलौनी खिलौना माता पर वे लोग पूजा करते हैं जिन्हें बड़ी चेचक निकलने पर दाग हो जाते हैं, ऐसा माना जाता है कि यहां माता को चमेली का तेल चढ़ाकर इसी तेल को लगाने से दाग खत्म हो जाते हैं.

बीजासेन माता पर सुहागिने अपने सुहाग की रक्षा की कामना करती हैं तथा खिचली माता पर उन बच्चों के ले जाया जाता है, जो बहुत ज्यादा खीजते रहते हैं. खिचली माता पर खीर चढ़ाई जाती है. मंदिर परिसर के बीचोबीच स्थित है भैंसासुर कुंड है, इसके अंदर सफेद कागज पर रखकर दही चावल चढ़ाकर एक सप्ताह तक इसके जल को शरीर पर लगाने से ज्वर समाप्त हो जाता है.

मंदिर का इतिहास

मंदिर के सहायक पुजारी ने बताया कि मंदिर परिसर में ही पांच कुइयां (छोटे कुएं) बने हुए हैं इन्हीं के नाम से इस सिद्धपीठ का नाम पंचकुइयां माता पड़ा. इन पांच कुओं के बारे में कहा जाता है, इनमें से एक कुंआ मातारानी की सेवा के लिए आरक्षित है, इसमें से सिर्फ उनकी सेवा पूजा के लिए ही जल जाता है, शेष कुएं वर्ण व्यवस्था के तहत आरक्षित किए गए थे. मंदिर पर क्वांर की नवरात्र व चैत्र की नवरात्र पर हर साल दो बार विशाल मेला लगता है. इसके अलावा शीतलाष्टमी भी धूमधाम से मनाई जाती है.

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