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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्त का संपूर्ण जीवन महोत्सव- आज तक जो मेरा नहीं हो सका, व अब भविष्य में होने वाला नहीं है. ऐसे जगत को मुझे भूल जाना है और परमात्मा का सतत स्मरण करना है. श्रीराम और श्रीकृष्ण की जन्म-जयंती मनाई जाती है, किंतु संतों का निर्वाण भी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
संतों का सब कुछ मंगलमय होता है, उनकी पुण्यतिथि भी मनाई जाती है. संत परमधाम कैसे पहुंचते हैं- यह देखने के लिए स्वर्ग से देवता भी आते हैं. श्रीमद्भागवत में कथा है, भीष्म जब शरशय्या थे तब सोच रहे थे, मैं काल के आधीन नहीं हूं. मैं प्रभु का सेवक हूँ. जब मेरे भगवान मुझे लेने आएंगे, तभी जाऊंगा. भीष्म काम विजेता थे, इसीलिए काल की आधीन नहीं हुए.
जो काम का सेवक बन जाता है, वह काल के गाल में चला जाता है. काम विजेता पितामह भीष्म की प्रार्थना की स्वतंत्रता थी उनके मृत्यु महोत्सव में हाजी देने के लिए श्रीकृष्ण द्वारिका जाते हुए वापस लौटे. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).