World Malaria Day 2024: विश्वभर में हर साल 25 अप्रैल को मलेरिया दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने के पीछे का उद्देश्य मलेरिया (Malaria) की रोकथाम करके लोगों का जान बचाना है. मलेरिया मादा एनोफिलीज नाम के मच्छर के काटने से होता है. इससे जान को खतरा रहता है. हर साल मलेरिया के कारण पूरी दुनिया में छह लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है.
साथ ही हर साल 20 करोड़ से भी ज्यादा लोग इसके चपेट में आते हैं. पूरे इतिहास में युद्ध में अधिकांश हताहतों का कारण महामारी रही है. जिनमें मलेरिया का प्रकोप ज्यादा था. एक तरह जहां पूरी दुनिया युद्ध लड़ रही थी, तो वहीं दूसरी ओर मलेरिया सैनिकों और आम नागरिकों के लिए काल बनी हुई थी. आज यानी 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस पर जानते हैं, कैसे इस बीमारी ने विश्व युद्ध में तबाही मचाई थी.
आमतौर पर इस बीमारी की पहचान सर्दी के कारण शरीर में सिहरन के साथ तेज बुखार से की जाती है, जो एक निश्चित अंतराल पर आता है. मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से यह बीमारी होती है. जब मादा मच्छर किसी को काटती है तो उसके लार से शरीर में प्लाज्मोडियम पैरासाइट (परजीवी) फैल जाते हैं. इसी पैरासाइट से मलेरिया होती है.
पहला विश्व युद्ध के दौरान मलेरिया ने मचाई थी तबाही
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मलेरिया अप्रत्याशित शत्रु था. 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक जब दुनिया भर की सेनाएं आमने-सामने थीं, तब भी मलेरिया ने तबाही मचाई थी. इस युद्ध के दौरान नौ करोड़ सैनिकों और इसके अन्य परिणामों के रूप में 1.3 करोड़ आम जन की मौत हुई थी. इसी दौरान 1918 में फैली स्पैनिश फ्लू महामारी से दुनिया भर के करीब 10 करोड़ लोग काल के गाल में समा गए थे. उस समय मलेरिया से भी बहुत लोगों की जान चली गई थी.
पांच लाख से ज्यादा लोग हुए थे प्रभावित
एक सितंबर 1939 को दूसरी बार दुनिया भर की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं. जिसमें पांच करोड़ से भी अधिक लोग मारे गए थे. इस दौरान मलेरिया का रौद्र रूप देखने को मिला था. अमेरिकी सेनाओं के लिए यह बीमारी काल बन कर आई थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 5 लाख से ज्यादा नागरिक मलेरिया की चपेट में आए थे. अफ्रीका और साउथ पैसिफिक में लड़ाई के दौरान 60 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिकों ने मलेरिया की वजह से ही जान गंवाई.
इतने सैनिकों-आम लोगों को जान गंवानी पड़ी
साउथ पैसिफिक में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान घने जंगल, भयंकर गर्मी और भारी बारिश के कारण हुए दलदल और कीचड़ से पनपे मच्छरों ने सैनिकों की मुसीबत बहुत ज्यादा बढ़ा दी थी. मच्छरों के वजह से सैनिक मलेरिया की चपेट में आ रहे थे. युद्ध के मैदान की स्थिति ही बदल गई थी.
1942 में अकेले अमेरिका और फिलीपींस के 75 हजार सैनिक मलेरिया के जद में आ गए थे. जापान के विरूद्ध लड़ाई के दौरान भी बड़ी संख्या में सैनिक मलेरिया की चपेट में आए, जिनमें से 57 हजार सैनिकों की इसी बीमारी की वजह से मौत हो गई थी. आंकड़ों के अनुसार, साउथ पैसिफिक में उस समय तैनात 60-65 प्रतिशत सैनिक मलेरिया की चपेट में कभी न कभी आए थे.
अब भी दुनिया भर में मलेरिया बना रही शिकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों की मानें तो साल 2022 में दुनिया भर के 85 देशों में मलेरिया के 249 मिलियन मामले सामने आए थे. इसमें से 6,08,000 लोगों की मौत हो गई थी. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, अफ्रीकी क्षेत्र में पूरी दुनिया के मुकाबले मलेरिया के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं.
साल 2022 में इसी क्षेत्र में मलेरिया के कुल मामले में से 94 प्रतिशत यानी 233 मिलियन मामले सामने आए थे. कुल मौतों में से 95 प्रतिशत यानी 5,80,000 मौतें इसी क्षेत्र में हुई थीं. पांच साल से कम उम्र के कुल बच्चों में से 80 प्रतिशत इसी क्षेत्र में मौत के मुंह में समां गए थे.
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