Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कैकेयी ने जब राम से वन में जाने के लिए कहा तो प्रभु श्री राम ने केवल इतना ही कहा, ” मां, तुमने तो मेरे मन की बात कही। मेरा भाई भरत शाश्वत सुख प्राप्त करे- इसके लिए तो मैं हमेशा के लिए वन में रहने को तैयार हूं।
भरत ने जब तक रामवन में रहे, तब तक श्री अयोध्या के समीप नंदीग्राम वन में निवास किये और भगवान की आज्ञा पालन करते हुए अयोध्या की शासन व्यवस्था, माताओं की सेवा किये। दिन भर अयोध्या दरबार में रह करके राज्य की सेवा करते रात्रि का शयन नंदीग्राम में करते थे। और भरत जी ने 14 वर्ष अन्न नहीं ग्रहण किये।
भगवान श्री राम ने जिन नियमों का पालन वन में किया उन सभी नियमों का पालन भरत जी ने अयोध्या में रहकर, महल में रहकर भी तप किया।
बताओ, दुनिया में ऐसा उच्च
बंधु-प्रेम कहीं दिखाई देता है।
आज तो रामायण का पारायण करने वाले एवं रामकथा श्रवण करने वाले दो भाई कोर्ट में लड़ते हैं और दोनों की हानि होती है। कितना आश्चर्य है. आज का मनुष्य घर भी नहीं छोड़ सकता और न घर में शांतिपूर्वक रह सकता है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).