On Mother’s Day, know why India is called Bharat Mata: हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है. यह दिन हर किसी के लिए बेहद खास है. इन दिन लोग अपने मां को खास होने का एहसास कराते हैं. मां एक ऐसा शब्द है जिसे सीमित शब्दों में बांधा ही नहीं जा सकता. उनके आंचल का छांव, प्यार और समर्थन हमें न सिर्फ बचपन में बल्कि पूरे जीवन में संघर्षों के साथ खड़े होने की हिम्मत और आत्मविश्वास देता है.
मां को माता, मातृ, जननी, अम्मा, मम्मी आदि कहकर पुकारते हैं. साथ ही हम अपने देश को भारत माता कहते हैं. भारत को आदिकाल से ही मातृभूमि कहा गया है. वेदों में भी इसका वर्णन मिलता है. अथर्ववेद में एक श्लोक में मातृभूमि का उल्लेख है. वहीं, जब बंकिमचंद्र चटर्जी ने वंदेमातरम लिखा तो मातृभूमि की अवधारणा को और भी बल मिल गया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत को भारत माता क्यों कहा जाता है. आइए इस मदर्स डे पर जानते हैं कि कहां से आईं भारत माता और इन्हें बंग देवी क्यों कहते है.
कब कहा जा रहा है भारत को माता
19वीं सदी में बांग्ला के एक मशहूर लेखक भूदेव मुखोपाध्याय के लिखे एक व्यंग्य उनाबिम्सा पुराणा यानी उन्नीसवें पुराण में भारत माता का जिक्र मिलता है. हालांकि, 1866 में प्रकाशित उन्नीसवें पुराण में भारत माता को आदि-भारती कहा गया था. फिर एक और बांग्ला लेखक किरण चंद्र बनर्जी ने भारत को माता कहा था. साल 1983 में इन्होंने एक नाटक लिखा था, जिसका नाम ही भारत माता था. इसमें भारत देश के लिए माता शब्द का ही प्रयोग किया गया था.
मां दुर्गा की तर्ज पर कहा गया भारत माता
स्वाधीनता संग्राम के दौरान दुर्गा पूजा के माध्यम से लोगों को संगठित किया जाता था. इस दौरान आजादी को लेकर बात की जाती थी. स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करने का यह एक बड़ा जरिया था. इसमें बंगाल के लेखक और कवि भी बढ़ चढ़कर शामिल होते थे. इसलिए वहां के लेखकों और कवियों पर मां दुर्गा का गहरा प्रभाव रहा. कवियों के लेखों, कविताओं और नाटकों में भारत को मां दुर्गा की तर्ज पर माता और मातृभूमि कहा जाने लगा.
इस कलाकर ने बनाई भारत माता की तस्वीर
आपने भारत माता की तस्वीर तो जरूर ही देखा होगा. जो तस्वीर आप देखते हैं उसका संबंध भी आजादी की लड़ाई से ही है. स्वाधीनता संग्राम के दौरान साल 1905 में बंगाल के कलाकार अवनींद्र नाथ टैगोर ने एक तस्वीर बनाई थी. इसी तस्वीर को भारत माता की पहली तस्वीर माना जाता है. इसमें भारत माता को बेहद सादे लिबास में दर्शाया गया था.
कैसी थी भारत माता की तस्वीर
अवनींद्र नाथ टैगोर के बनाए तस्वीर में भारत माता के चार हाथ दिखाए गए थे. उनके एक हाथ में गेहूं की बाली दूसरे हाथ में कपड़ा, तीसरे हाथ में किताब और चौथे हाथ में माला दर्शाया गया था. इस तस्वीर का यह मतलब था कि माता अपने देश में रोटी, कपड़ा, शिक्षा और धर्म-कर्म स्थापित करें.
इस वाटर कलर की तस्वीर में भारत माता को भगवा रंग का बंगाली परिधान पहने दर्शाया गया था. इस तस्वीर में नजर आने वाली देवी को बंग देवी भी कहा गया, जिसके बाद भारत माता को बंग देवी भी कहा गया.
क्रांति का प्रतीक बन गई थी फोटो
स्वाधीनता संग्राम के दौरान यह तस्वीर घर-घर पहुंच गई थी. स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने वाले क्रांतिकारी इस तस्वीर को हमेशा अपने पास रखते थे. हालांकि, उस समय यह तस्वीर अपने पास रखना खतरे का सबब था. वजह यह था कि भारत माता की तस्वीर अपने पास रखने वाले को क्रांतिकारी समझा जाता था. अगर किसी के पास यह तस्वीर मिल गई तो उसे पकड़ लिया जाता था.
आजादी के बाद तस्वीर में बदलाव
अंग्रेजों से देश को आजादी मिलने के बाद भारत माता की तस्वीर में बदलाव होते रहे. पहले भारत माता के चार हाथ थे, वहीं वर्तमान की तस्वीरों में दो हाथ दर्शाए जाते हैं. इस तस्वीर में भारत माता के एक हाथ में झंडा और दूसरे में त्रिशूल दर्शाया जाता है. उनके साथ शेर भी खड़ा रहता है. हालांकि, भारत माता की किसी तस्वीर में उनके हाथ में तिरंगा दर्शाया जाता है तो किसी तस्वीर में भगवा झंडा दिखाया जाता है.
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