आज से शुरू हो गई चारधाम यात्रा, बद्रीनाथ धाम से जुड़ी ये मान्यता नहीं जानते होंगे आप!

Abhinav Tripathi
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Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Badrinath Dham: हिंदू धर्म में चारधाम यात्रा का अपना महत्व है. चारधाम यात्रा की शुरुआत आज से हो गई है. 10 मई को केदारनाथ धाम और गंगोत्री धाम के कपाट खुल गए थे. आज से बद्रीनाथ धाम के भी कपाट खुल गए हैं. बद्रीनाथ धाम में आज से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. आज सुबह विधि विधान के पूजन के बाद बद्रीनाथ धाम के कपाट खोल दिए गए. कपाट खुलने से पहले मंदिर को शानदार तरीके से सजाया गया है. कपाट खुलने के मौके पर अखंड ज्योति के दर्शन करने को लेकर तीर्थ यात्रियों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है. इन सब के बीच आइए आपको बद्रीनाथ धाम से जुड़ी एक मान्यता बताते हैं.

दरअसल, सनातन धर्म में शंख का विशेष महत्व है. किसी भी पूजा पाठ के शुरू होने से लेकर पूर्णाहुति तक शंख की ध्वनि सुनाई देती है. माना जाता है कि शंख की ध्वनि के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है. हालांकि, आप यह जानकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि बद्रीनाथ धाम में शंख बजाने पर मनाही है. आइए आपको बताते हैं आखिर ऐसा क्यों है…

जानिए मान्यता

बद्रीनाथ धाम मंदिर पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के चमोली जनपद में है. यह पवित्र धाम अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है. मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा के दौरान शंख नहीं बजाया जाता है. भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर वैष्णवों के लिए खासकर एक पवित्र स्थल है, जहां भगवान विष्णु की पूजा बद्रीनाथ के रूप में की जाती है.

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क्यों नहीं बजाया जाता है शंख

बद्रीनाथ धाम में शंख न बजाए जाने के पीछे दो पौराणिक मान्यताएं हैं. यही वजह है कि इस मंदिर में पूजा पाठ, विशेष अनुष्ठान या आरती के दौरान भी शंख नहीं बजाया जाता है. पहली पौराणिक कथा के अनुसार बद्रीनाथ धाम में स्थित तुलसी भवन में मां लक्ष्मी ध्यान मुद्रा में विराजमान थी, तभी भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस का वध किया था. वहीं, किसी भी युद्ध को जीतने के पश्चात शंख का नाद किया जाता है. बावजूद इसके भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी के ध्यान में किसी भी तरह की परेशानी न हो इसी कारण उन्होंने शंख का नाद नहीं किया. इसी मान्यता के कारण बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है.

वहीं, दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार केदारनाथ में राक्षसों ने एक समय बहुत तहलका मचाया हुआ था. जिससे बड़े -बड़े ऋषि-मुनियों से लेकर मानव तक परेशान थे. यह सब देखकर अगत्स्य नामक मुनि ने सभी राक्षसों का वध करना शुरू किया. तभी वतापी और अतापि नाम के दो राक्षस अपनी जान बचाने के लिए मन्दाकिनी नदी की शरण ली और वहीं पर शंख में जाकर छुप गए, शंख बजाने से राक्षस भाग जायेंगे इसी कारण ऋषि अगत्स्य ने शंख नहीं बजाया. इस कारण से भी बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है.

मंदिर में शंख न बजाने के पीछे का वैज्ञानिक तर्क

जानकारी दें कि पौराणिक कथा-मान्यताओं के आलावा बद्रीनाथ मंदिर में शंख न बजाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. जिसके कारण यहाँ शंख बजाना प्रतिबंधित है. दरअसल, सर्दियों के मौसम में अधिक ठण्ड के कारण यहां बर्फ पड़ने लगती है जिससे बर्फ टूटने गिरने का खतरा बढ़ जाता है और ऐसी स्थिति में शंख के नाद से बर्फ में दरार पड़ने की काफी सम्भावना होती है. जिससे लैंडस्लाइड हो सकती है और जन-जीवन प्रभावित हो सकता है.

(अस्वीकरण: लेख में दी गई जानकारी केवल मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर लिखी गई है. द प्रिंटलाइंस इसकी पुष्टी नहीं करता है.)

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