रईसी कैसे बने मुस्लिम देशों की आवाज, जानिए वकील और कट्टर मौलवी से राष्ट्रपति बनने का सफर

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का हेलीकॉप्टर रविवार को एक एक हादसे का शिकार हो गया है. आइए बताते हैं उनके वकील और कट्टरपंथी मौलवी से राष्ट्रपति बनने का सफर.

ईरान की रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने इसकी पुष्टि की है. बचाव और खोजी टीमों ने राष्ट्रपति राईसी के दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर की पहचान कर ली है. इस दौरान हेलीकॉप्टर पर सवार लोगों के जीवित रहने की संभावना बहुत कम है. 

उत्तर पश्चिमी ईरान के जोल्फा में रईसी का हेलीकॉप्टर उस समय क्रैश हो गया जब वह पूर्वी अजरबैजान प्रांत में बांध का उद्घाटन करके लौट रहे थे.

रईसी ईरान के राष्ट्रपति होने के साथ-साथ सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खामेनेई के करीबी और एक कट्टरपंथी मौलवी के रूप में जाने जाते हैं. 2021 के राष्ट्रपति चुनाव में इब्राहीम रईसी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की थी.

इस चुनाव में उनको लगभग 97 फीसदी वोट मिला. रईसी की जीत ने इस्लामिक देश ईरान के हर हिस्से पर रूढ़िवादी नेताओं के नियंत्रण को पहले से कहीं ज्यादा मजबूत किया. 

रईसी जब ईरान के राष्ट्रपति बने तब उन्हें ईरान के गंभीर आर्थिक समस्याओं, बढ़ते क्षेत्रीय तनाव और अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर बातचीत जैसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

आपको बता दें कि इब्राहिम रईसी का जन्म 1960 में मशहद में हुआ था. वो जब 5 साल के थे उस समय उनके पिता का इंतकाल हो गया. उनके पिता भी एक मौलवी थे. रईसी हमेशा काली पगड़ी पहनते थे. 

ऐसा इसलिए क्योंकि शिया परंपरा में पैगंबर मुहम्मद के वंशज काली पगड़ी पहनते हैं. रईसी भी अपने पिता के दिखाए रास्ते पर चलकर 15 साल की उम्र में कोम शहर में एक मदरसा में जाने लगे.

मदरसे का छात्र रहते हुए रईसी ने ईरान की इस्लामी क्रांति में भाग लिया. तब अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में हुई इस क्रांति की मदद से 1979 में ईरान के शाह मोहम्मद रेजा पहलवी को सत्ता से उखाड़ फेंका. 

इसके बाद ईरान को इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया. इसके बाद रईसी ईरानी न्यायपालिका में शामिल हुए. ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने कई शहरों में बतौर अभियोजक काम किया.

महज 25 साल की उम्र में इब्राहिम तेहरान में डिप्टी प्रोसिक्यूटर बन गए. इस दौरान रईसी उन चार न्यायाधीशों में से शामिल रहे, जो 1988 में गुप्त रूप से बने ईरान के 'डेथ कमिटी' ट्रिब्यूनल के सदस्य थे. आगे बताते हैं क्या है डेथ कमिटी?

दरअसल, इस ट्रिब्यूनल ने पॉलिटिकल एक्टिविटी के चलते जेल की सजा काट रहे हजारों कैदियों पर पुनः मुकदमा चलाया. ये कैदी वामपंथी विपक्षी समूह मुजाहिदीन-ए खल्क के सदस्य थे. इन्हें पीपुल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइजेश ऑफ ईरान के रूप में भी जाना जाता है.

दरअसल, ईरान के संस्थापक अयातुल्ला रूहोल्ला खुमैनी ने एक गुप्त आदेश के तहत हजारों राजनीतिक कैदियों को जान से मारने का आदेश दिया था.  इनमें ज्यादातर सद्दाम हुसैन के समर्थक, फेडियन और टुडेह पार्टी के समर्थक शामिल थे. 

खुमैनी के इस आदेश का पालन करने के लिए एक चार सदस्यों की कमिटी बनाई गई. इस कमिटी को ही 'डेथ कमिटी' कहा जाता है.

इस ट्रिब्यूनल द्वारा कितने लोगों को मौत की सजा दी गई, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है, लेकिन मानवाधिकारों समूहों का कहना है कि कम से कम पांच हजार पुरुषों और महिलाओं को मार डाला गया. 

सभी शवों को किसी गुमनाम जगह दफनाया गया. ईरान के नेता भी इस बात से इनकार नहीं करते हैं. लेकिन वह इस पर टिप्पणी भी नहीं करना चाहते , बचते हैं.

हालांकि, इब्राहिम रईसी इस सामूहिक हत्याकांड में खुद की किसी भी तरह की भूमिका से इनकार करते थे. उन्होंने कहा था कि अयातुल्ला रूहोल्ला खुमैनी के फतवे या धार्मिक फैसले के कारण उस सजा को उचित ठहराया गया था.

रविवार को अपने हेलीकॉप्टर के क्रैश से पहले ही रईसी ने फिलिस्तीनियों के लिए ईरान के समर्थन पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन मुस्लिम दुनिया का पहला मुद्दा है.

रईसी की पत्नी जमीलेह तेहरान के शाहिद बेहिश्ती यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं. रईसी और जमीलेह की दो बेटियां हैं. रईसी के ससुर अयातुल्ला अहमद अलमोल्होदा मशहद के कट्टरपंथी मौलवी हैं.