क्या धरती और चांद के बीच लगेगी लिफ्ट! मिनटों में तय कर पाएंगे सफर
सोचिए क्या कोई लिफ्ट धरती और चांद के बीच लग सकती है क्या. चांद और धरती की यात्रा कुछ मिनट ही पूरी हो जाएगी.
ये कपोल-कल्पना ही लगता है. हालांकि, जापानी कंपनी ऐसा हकीकत में करने जा रही है. ओबैयाशी कॉर्पोरेशन अभी अंतरिक्ष तक लिफ्ट बनाने के प्रोजेक्ट पर रिसर्च में लगी है.
बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस 'स्पेस एलिवेटर' पर जल्द काम शुरू हो सकता है.
जापानी कंपनी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के पीछे बेसिक आइडिया काफी सिंपल है. उसका मानना है कि पृथ्वी को अंतरिक्ष से जोड़ने वाला एक लंबा तार तार हमें बहुत कम लागत में कक्षा में पहुंचा सकता है.
इससे हम रिकॉर्ड गति से दूसरे ग्रहों तक पहुंच सकते हैं. वैज्ञानिकों की मानें, तो मंगल ग्रह तक पहुंचने के लिए 6-8 महीने के बजाय, स्पेस एलीवेटर के जरिए 3-4 महीने ही लगेंगे.
ओबैयाशी कॉर्पोरेशन के नाम दुनिया का सबसे बड़ा टावर, Tokyo Skytree बनाने का रिकॉर्ड है. कंपनी ने 2012 में स्पेस एलिवेटर बनाने की घोषणा की थी.
उसी साल एक रिपोर्ट में कंपनी ने कहा था कि 100 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट के लिए निर्माण 2025 से शुरू होगा.
कंपनी ने उम्मीद जताई थी कि उसका स्पेस एलिवेटर 2050 से काम करना शुरू कर देगा. उस रिपोर्ट को लिखने वाले योजी इशिकावा से बिजनेस इनसाइडर ने बात की.
योजी ने बताया कि कंपनी शायद अगले साल तक कंस्ट्रक्शन शुरू नहीं करेगी. उनके मुताबिक, कंपनी अभी 'रिसर्च और डेवलपमेंट, रफ डिजाइन, पार्टनरशिप बिल्डिंग और प्रमोशन में लगी हुई है.'
रॉकेट्स से अंतरिक्ष में इंसान और अन्य चीजें भेजना बेहद खर्चीला है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA का अनुमान है कि उसके चार आर्टेमिस मून मिशनों पर करीब 16.4 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा.
इस खर्च में सबसे बड़ा हिस्सा ईंधन का है. आपको अंतरिक्ष में जाने के लिए काफी सारा ईंधन चाहिए और वह ईंधन भारी होता है, यानी जरूरी ईंधन की मात्रा बढ़ जाती है.
स्पेस एलिवेटर बने जाने से रॉकेट्स या ईंधन की जरूरत खत्म हो जाएगी. इसके कुछ डिजाइन दिखाते हैं कि सामान को क्लाइमर्स कहे जाने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वीइकल्स से ऑर्बिट में पहुंचाया जा सकता है. ये क्लाइमर्स को सोलर पावर या माइक्रोवेव्स से चलाया जाएगा.
ओबैयाशी कॉर्पोरेशन के लिए अपनी रिपोर्ट में इशिकावा ने कहा था कि इस तरह के स्पेस एलिवेटर से अंतरिक्ष में सामान ले जाने की लागत को घटाकर 57 डॉलर प्रति पाउंड करने में मदद मिल सकती है.
इसके उलट, SpaceX का फाल्कन 9 लगभग 1,227 डॉलर प्रति पाउंड की कीमत पर रॉकेट लॉन्च करता है. स्पेस एलिवेटर में रॉकेट के फटने का खतरा भी नहीं है.
तकनीकी चुनौतियों को छोड़ दें, तब भी स्पेस एलिवेटर बनाना आसान नहीं होगा. वैज्ञानिकों के सामने एक बड़ा सवाल यह है कि तार या ट्यूब को किस चीज से बनाया जाए.
चूंकि उसे काफी ज्यादा बोझ सहना पड़ेगा और इतने तनाव को झेलने के लिए स्टील जैसे टिपिकल मटेरियल से तार या ट्यूब को खासा मोटा बनाना पड़ेगा. एक स्पेस एलिवेटर के लिए जितना स्टील चाहिए, धरती पर उतना स्टील नहीं है.
इशिकावा ने अपनी रिपोर्ट में कार्बन नैनोट्यूब का सुझाव दिया था. लेकिन ये भले ही बेहद मजबूत होती हों, इनका आकार बेहद छोटा होता है.
वैज्ञानिक अभी तक अधिकतम 2 फीट लंबे ट्यूब ही बना पाए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, भू-समकालिक कक्षा तक पहुंचने के लिए तार कम से कम 22,000 मील लंबा होना चाहिए.