Delhi Excise Policy Case: दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. दिल्ली शराब नीति में भ्रष्टाचार से जुड़े सीबीआई केस में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. फिलहाल हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. ईडी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पहले ही जमानत दे दी है. हाईकोर्ट में केजरीवाल की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और विक्रम चौधरी पेश हुए, वहीं सीबीआई की तरफ से लोक अभियोजक डीपी सिंह ने अपना तर्क कोर्ट के सामने रखा.
केजरीवाल के अधिवक्ता का कहना है कि वह एक मुख्यमंत्री हैं कोई आतंकी नहीं. पिछले कई महीने से वे जेल में हैं, लेकिन सीबीआई ने गिरफ्तार नहीं किया. जैसे ही ट्रायल कोर्ट ने केजरीवाल को ईडी मामले में जमानत दी, उसके तत्काल बाद सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया.
सीएम केजरीवाल के अधिवक्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी केजरीवाल को अंतरिम जमान दी थी और केजरीवाल ने सरेंडर कर दिया था. उसी के बाद ट्रायल कोर्ट ने जमानत दी थी. ट्रायल कोर्ट का फैसला बिल्कुल ठीक था. केजरीवाल कहीं भाग नहीं रहे हैं और उन्हें झूठे मामले में गिरफ्तार किया गया है. केजरीवाल ने हमेशा जांच में सहयोग किया है. उन्होंने कहा कि केजरीवाल की ब्लड शुगर पांच बार सोते हुए 50 के नीचे जा चुकी है. यह चिंता का कारण है. सोते समय शुगर का स्तर गिरना खतरनाक है. उन्होंने कहा कि इस मामले में सबको जमानत मिल रही है, मेरी पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी है, लेकिन मुझे बेल नहीं मिल रही. तथ्यों को देखते हुए मुझे जमानत दी जाए.
सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक डीपी सिंह ने कोर्ट से कहा, आज तक ऐसी कोई टिप्पणी नहीं आई है कि सीबीआई अतिउत्साही रही है या उसने ऐसा कुछ किया है, जिससे किसी कानून का उल्लंघन हुआ हो. आज तक सीबीआई ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया है, जिसे अप्रर्याप्त कहा जा सके. सीबीआई ने सामग्री जुटाने में तीन महीने तक काम किया, ऐसा नहीं है कि एजेंसी ने कुछ नहीं किया. केजरीवाल लोक सेवक हैं और उनसे पूछताछ के लिए पीसी एक्ट में अनुमति की जरूरत होती है. जनवरी में मामले में सरकारी गवाह बने मगुंटा रेड्डी ने बयान दिया और 23 अप्रैल को अनुमति मिली और इससे पहले हम कुछ नहीं कर सकते थे. सीबीआई में काम करने का एक तरीका है.
डीपी सिंह ने कहा, सरकारी वकील होने के नाते मैं इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकता, जिसका कोई कानूनी अर्थ नहीं है. इंश्योरेंस अरेस्ट जैसे शब्द का इस्तेमाल न्यायसंगत नहीं है. जांच एजेंसी होने के नाते हमारे पास अपने अधिकार है. हमारे पास अपने अधिकार हैं कि किस आरोपी के खिलाफ कब चार्जशीट करनी है और किस आरोपी को किस समय बुलाना है. वो एक मुख्यमंत्री हैं, उनकी भूमिका साफ़ नहीं थी, क्योंकि शराब नीति आबकारी मंत्री के तहत बनी थी, लेकिन जब जरूरी लगा, उन्हें बुलाया गया. सिघवी ने इंन्योरेंस गिरफ्तारी शब्द अपनी तरफ से गढ़ा है ये अनुचित है.
आगे उन्होंने कहा कि सीबीआई ने उन्हे धारा 160 के तहत बुलाया था, लेकिन यह धारा गवाहों के लिए नहीं है. इसका इस्तेमाल केस के तथ्यों से परिचित किसी भी व्यक्ति के लिए किया जा सकता है. ये कोई भी हो सकता है. इनका कहना है कि उनसे 9 घंटे तक पूछताछ चली. हमारे पास ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग है. सब कुछ टाइप किया गया, उन्होंने उसे चेक किया और उसमें सुधार भी किए और उन सुधारों को समायोजित किया गया. इस दौरान सीबीआई कार्यालय के बाहर भारी भीड़ थी. कौन तय करेगा कि किसी मामले की जांच कैसे की जाए? क्या ये तय करेंगे?