Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भागवती कथा- भागवत प्रसादी संत-बनो- हर एक गांव में एक-आध सच्चा सन्त तो अवश्य ही होता है। समाज में सन्त न हों तो समाज टिक नहीं सकता। इस पर भी यदि सन्त न मिलते हों तो उन्हें ढूंढने के लिए दौड़-धूप करने के बजाय, जीवन को पवित्र बनाकर स्वयं ही सन्त बन जाओ।
आप सन्त बनोगे तो आपको ढूंढने के लिए सच्चे सन्त सामने दौड़ते चले आयेंगे। सन्त के जीवन का बड़ा से बड़ा लक्षण तितिक्षा है। तितिक्षा का अर्थ है सहनशक्ति। जो सहन करना सीखता है, वही सन्त बनता है। साधारण मनुष्य का मन क्षण-क्षण में बदलता रहता है, किंतु सन्त का मन हमेशा शान्त और स्थिर होता है। मानापमान, लाभालाभ, सुख-दुःख, आदि द्विधाभरी परिस्थितियों में भी संत तो सौम्य और स्थितप्रज्ञ ही रहता है।
आप ऐसे ही संत बनो। अतिविषयी का संग बड़ा कुसंग है। उससे बचते रहो। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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