Pakistan: जुल्मो सितम के मामले में पाकिस्तान अपने पड़ोसी के नक्शेकदम पर चल रहा है. खबर है कि पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में नजरबंदी केंद्र खोलने की योजना बना रही है. दरसअसल हाल ही में डॉ. मेहरांग बलोच जैसे नेताओं द्वारा अहिंसक प्रदर्शनों ने बलूचिस्तान के लोगों और सेना के बीच चल रहे तनाव को उजागर कर दिया है. इसके जवाब में, पाक सेना ने खैबर पख्तूनख्वा (KPK) में स्थापित किए गए नजरबंदी केंद्र की तरह बलूचिस्तान में अतिरिक्त केंद्रों को खोलने का विचार कर रही है.
बलूचिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा जैसी नजरबंदी नीति को औपचारिक रूप देने का प्रस्ताव पहले से ही गंभीर स्थिति में एक चिंताजनक आयाम जोड़ता है. राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी के नाम पर, सेना की कार्रवाइयों का बलूचिस्तान के लोगों के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डर है कि ऐसे केंद्रों को कानूनी रूप देने से पाकिस्तानी सेना द्वारा दुर्व्यवहारों का और अधिक संस्थानीकरण हो सकता है।
प्रस्तावित नजरबंदी केंद्र
बलूचिस्तान पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रस्तावित नजरबंदी केंद्र ग्वांतानामो बे जेल परिसर या अफगानिस्तान में पहले इस्तेमाल किए जाने वाले ‘ब्लैक साइट्स’ की तर्ज पर होगा. इस कदम से मानवाधिकार उल्लंघनों और जबरन गायब किए जाने की औपचारिकता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं. बलूचिस्तान में सैन्य छावनियों के अंदर ऐसे नजरबंदी केंद्र के अस्तित्व के बारे में लगातार आरोप लगे हैं, हालांकि इन्हें सरकारी अधिकारियों ने कभी आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है.
45 हजार से अधिक बलोच हो चुके लापता
वॉयस फॉर बलोच मिसिंग पर्सन्स (VBMP) के मुताबिक, 45 हजार से अधिक बलोच पुरुष, महिलाएं और बच्चे लापता हो चुके हैं. माना जाता है कि वे सी नजरबंदी केंद्रों में कैद हैं. जबरन या नैच्छिक गायबियों पर संयुक्त राष्ट्र के कार्य समूह ने भी इस क्षेत्र में जबरन गायबियों की बड़ी संख्या के बारे में चिंता व्यक्त की है. आमतौर पर पाकिस्तानी अधिकारी इन आरोपों पर टिप्पणी नहीं करते या उन्हें पूरी तरह से गलत करार देते हैं.
कानूनी और संवैधानिक पहलू
ऐतिहासिक रूप से, पाकि सेना ने बलूचिस्तान में अपने कार्यों के लिए कानूनी आधार की जरूरत नहीं समझी है. केपीके में, नजरबंदी केंद्रों को “एक्शन्स (इन एड ऑफ सिविल पावर) रेगुलेशंस 2011” के अंतर्गत स्थापित किया गया था, जिसने सुरक्षाबलों को अनिश्चितकाल तक व्यक्तियों को अरेस्ट और हिरासत में रखने के व्यापक अधिकार दिए थे. 2019 में पेशावर उच्च न्यायालय ने इन केंद्रों को असंवैधानिक घोषित कर दिया और कहा कि ये मौलिक मानवाधिकारों और उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हैं. इसके बावजूद, रिपोर्टें बताती हैं कि ऐसे केपीके में अभी भी ये काम कर रही हैं. बलूचिस्तान में, कथित नजरबंदी केंद्र बिना किसी कानूनी या संवैधानिक समर्थन के प्रयोग में रहे हैं. कैद से मुक्त किए गए व्यक्तियों ने इन केंद्रों को अवैध हिरासत और यातना केंद्र के रूप में बताया है.
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