Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, हर व्यक्ति प्रारब्ध की डोर से बंधा हुआ है। हम जो नहीं चाहते, वह जीवन में होता रहता है और जो चाहते हैं, वह नहीं हो पाता। क्योंकि व्यक्ति कर्म की डोर में, प्रारब्ध की डोर में बंधा हुआ है। श्री उद्धव जी भगवान् श्रीकृष्ण से बोले कि – मैं आपका वियोग कैसे सह सकूंगा ?भगवान ने कहा, विवेक से। यदि जीवन में विवेक हो तो दुःख बहुत आसानी से सहा जा सकता है। अगर घर में ए०सी० है, तो ग्रीष्म ऋतु में पड़ने वाली गर्मी को भी आसानी से सह सकते हैं।
यदि आप कार में यात्रा कर रहे हैं तो वर्षा से आपका बचाव हो सकता है। गर्म कपड़े और हीटर से सर्दी से बचाव हो सकता है। इसी तरह जीवन में आने वाली विपत्तियों से बचना हो, यदि विवेक का सहारा ले लिया जाये तो व्यक्ति बड़ी-से-बड़ी विपत्तियों से बच सकता है। विपत्ति हमारे पास न आये, इसके वजाय यदि विपत्ति सहने की हममें योग्यता आ जाये तो ज्यादा अच्छा है। विपत्ति न आये, ऐसा हम सोचेंगे तो यह सम्भव नहीं है, क्योंकि यदि प्रारब्ध में लिखा है तो विपत्ति आयेगी ही। हम विपत्ति से बचने का उपाय करते हैं। लेकिन विपत्ति का हम पर प्रभाव न हो, इसके लिये कोई उपाय नहीं करते।
शास्त्र कहते हैं कि- विपत्ति का हम पर प्रभाव न हो इसके लिये कोशिश करें। इसका उपाय करें। धर्म-कर्म और ईश्वर की आराधना से आने वाली विपत्ति टल जाती है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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