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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, अब प्रश्न है कि वैराग्य का उदय कैसे हो? इसके लिये शास्त्रकारों ने सनातन धर्म के नियमों पर दृढ़ता से चलने का सुझाव दिया है। वैराग्य की प्राप्ति से पहले जीवन की धारा सात्विक बनाना और धर्मानुसार जीवनयापन आवश्यक है। धर्म का फल ही वैराग्य है और वैराग्य का फल भक्ति है, भक्ति का फल योग है और योग का फल ज्ञान और ज्ञान का फल स्वरूप की प्राप्ति अर्थात् मोक्ष है। वैराग्य जागृत करने के लिये विरक्त महापुरुषों का संग, शास्त्रों की कथा, सत्संग और संसार से हटकर प्रभु-भक्ति करने की आवश्यकता है।शरीर, पदार्थों व जगत की नश्वर्ता, आत्मा की अमरता और ईश्वर की प्रभुसत्ता में दृढ़ विश्वास जगाना होगा।
इससे बहिर्मुखी बहने वाली ऊर्जा अंतर्मुखी होकर अन्तःकरण को आनंद रस से भर देगी। वैराग्य को ही आधार बनाया जाये तभी मानव जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति होगी। ‘ वैराग्य राग रसिको भव भक्तिनिष्ठ ‘ का संदेश स्वतः सिद्ध होगा।सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).