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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, वैराग्य ही एक ऐसा तत्त्व है जो पदार्थों का सही मूल्यांकन करवाकर उनके सही स्वरूप का दिग्दर्शन कराता है। ऐसे एक्स-रे मशीन शरीर के अंदर के दोष अथवा रोग दर्शाता है, वैसे ही वैराग्य भी ज्ञान चक्षु खोलकर जीवन के सार्थकता और सच्चाई का दर्शन करवाता है। तन की क्षणभंगुरता, भोगों की निस्सारता, राग में रोगों की व्याप्ति,वैराग्य चक्षु से ज्ञात होते हैं। वैराग्य की दृष्टि से तो संसार सेमर के वृक्ष के समान है, जिसके फल अनार की तरह आकर्षक लगते हैं परंतु जिनके अंदर रस न होकर केवल उड़ जाने वाला पदार्थ रूई होता है। तोता जब उसे चोंच मारता है तो कुछ हाथ नहीं लगता।
मानव भी तोते की तरह संसार में चोंच अर्थात् पैर मारता है परंतु पछतावा ही हाथ लगता है। श्रीगोकर्णजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण में अपने-पिता श्रीआत्मदेवजी को कहा है- वैराग्य रागरसिको भव भक्तिनिष्ठः। अर्थात् पिताजी! आ बैराग्य रूपी रस के रसिक बनकर भक्तिनिष्ट होकर भविष्य को सवारों। भागवत ग्रंथ में एक नहीं सैंकड़ों वैरागियों का ही गाथा है। भगवान नारद, ऋषभदेव, जड़ भरत, आत्मदेव, प्रचेता, सनत कुमार आदि। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज ने भी धर्म, वैराग्य, ज्ञान, मोक्ष का एक चौपाई में अद्भुत विवेचन किया है।
धरम ते विरति, जोग ते ज्ञाना। ज्ञान मोक्ष प्रद वेद बखाना।। अर्थात् धर्म से वैराग्य, वैराग्य से ज्ञान और ज्ञान से मोक्ष प्राप्त होता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).