Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, वेद भगवान् कहते हैं कि संसार में सब रिश्तेनाते स्वार्थ के हैं। सब स्वार्थ बस प्रीति करते हैं।निःस्वार्थ प्रेम तो केवल परम पिता ईश्वर ही करते हैं या ईश्वर के परम सेवक संत करते हैं।
विश्वबन्द्य गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महाराज श्रीरामचरितमानस में लिखते हैं-
हेतु रहित जग जुग उपकारी।
तुम तुम्हार सेवक असुरारी ।।
अर्थात् हे प्रभु! आप और आपके सेवक ही जीवों से निस्वार्थ और सच्चा प्रेम करते हैं। ऐसे ईश्वर और ईश्वर के भक्तों एवं संतों का ही स्मरण करना चाहिए।
संसार में अधिकतर स्वार्थ की प्रीति है-
सुर नर मुनि सबकै यह रीती।स्वारथ लागि करैं सब प्रीति।।
स्वारथ मीत सकल जग माहीं। सपनेहुं प्रभु परमारथ नाहीं ।।
गुरूवाणी में भी कहा गया है-
स्वारथ के सब मीत। जगत में झूठी देखी प्रीत।।
अपने ही सुख में सुखमाने, क्या धारा क्या मीत।
अन्त समय कोई साथ न जाये, यही जगत की रीत।।
नानक सोई भव पार तरे,जे गावहिं प्रभु के गीत।
जगत में झूठी देखी प्रीत।।
इनके अर्थ स्वतः स्पष्ट है। महापुरुषों ने चेतावनी दी है कि- जगत् की प्रीति झूठी एवं स्वार्थकारी है। केवल ईश्वर का भजन ही सत्य है ।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).