Interesting Fact: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, 16 संस्कारों में विवाह संस्कार को 15वें स्थान पर माना जाता है. ये धार्मिक, संस्कृत और सामाजिक तौर पर बहुत महत्व रखता है. शादी एक ऐसा पवित्र बंधन है, जिसमें दूल्हा-दुल्हन हिन्दू रीति-रिवाजों को निभाकर 7 जन्मों के लिए जुड़ जाते हैं. आपने देखा होगा कि दूल्हा घोड़ी पर ही सवार होकर शादी करने जाता है, लेकिन क्या आपने कभी इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश की है कि, आखिर दूल्हा बारात ले जाते समय घोड़ी पर ही क्यों बैठकर जाता है. आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह.
दरअसल, हिंदू धर्म में ये केवल पारंपरिक रिवाज नहीं है बल्कि इसके पीछे धार्मिक और ज्योतिष महत्व भी होता है. ऐसा माना जाता है कि, दूल्हे के घोड़ी पर सवार होने की रस्म रामायण और महाभारत के ही समय से चली आ रही है. आजकल की शादियों में लोग इसका महत्तव नहीं समझते हैं. अगर आप भी इस रस्म को महज स्टाइल या रॉयल्टी एंट्री के तौर पर देखते हैं, तो आज हम आपको इसके पीछे का मुख्य कारण बताने जा रहे हैं.
सूर्य देव को लेकर कथा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य देव के पास सात घोड़े होते हैं. ऐसा माना जाता है कि, ये घोड़े हमारी सात इन्द्रियों को नियंत्रित करते हैं. जब कोई दूल्हा घोड़ी पर बैठता है तो सूर्य की पत्नी संध्या, दूल्हा-दुल्हन के वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं. ज्योतिष की मानें तो, इस रिवाज से जातक हमेशा शनि देव की दृष्टि से सुरक्षित रहता है.
देवी संध्या को लेकर पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं में ऐसी मान्यता है कि, देवी संध्या ने घोड़ी का अवतार लिया था, जिससे उनको पुत्र की प्राप्ति हुई थी. इसलिए उन्हें घोड़ी की महारानी कहा जाता है. जब दूल्हा घोड़ी पर सवार होता है, तो उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है, जिसके कारण वो अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित कर लेता है.
शनि देव को लेकर कथा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, घोड़े को शनिदेव का वाहन माना जाता है. इसलिए ये रस्म और भी महत्वपूर्ण होती है. जब दूल्हा घोड़ी चढ़ता है, तो वो शनिदेव की दृष्टि से सुरक्षित रहता है. उसका वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहता है.
(Disclaimer: लेख में दी गई जानकारी समान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है, इसकी पुष्टी The Printlines नहीं करता है.)