Zimbabwe: ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’, चार्ल्स डार्विन का ये कथन काफी प्रचलित है, जिसका अर्थ है. ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’. दूसरे शब्दों में कहें तो मजबूत जिंदा रहेगा और कमजोर मारा जाएगा. यही बात जिफबॉब्वे में सच होती हुई नजर आ रही है. क्योंकि यहां करीब 200 हथियों को मारने का फैसला किया गया है, जिससे वहां भूख से तड़प रहे लोगों को जीवन जीने के लिए खाना मिल सके.
दरअसल, जिम्बॉब्वे में इस वक्त चार दशकों का सबसे भयानक सूखा फैला हुआ है. फसलें सूख के नष्ट हो गई है. ऐसे में लोगों के पास खाने के लिए कुछ नही है. यही वजह है कि यहा की वाइल्डलाइफ अथॉरिटी ने हाथियों को मारने का फैसला किया है.
अल-नीनो की वजह से पड़ा सूखा
दक्षिण अफ्रीकी देशों में इस समय सूखा पड़ने की वजह अल-नीनो को माना जा रहा है, जिसके वजह से करीब 6.80 करोड़ भूखमरी की समस्या से जुझ रहे है. पूरे इलाके में खाने की सामग्रियों की बड़ी किल्लत बनी हुई है. ऐसे में जिम्बॉब्वे पार्क्स एंड वाइल्डलाइफ अथॉरिटी ने 200 हाथियों को मारने की बात की पुष्टि कर दी है.
नामीबिया मे भी भूखमरी से परेशान लोग
जिम्बॉब्वे के साथ ही उसके पड़ोसी देश नामीबिया में भी भूखमरी के कारण लोगों की जान जा रही है. ऐसे में वहां भी 83 हाथियों को मारने का निर्णय लिया गया था. दरअसल, अफ्रीका के पांच देशों में हाथियों की तादाद सबसे अधिक है, जिसमें जिम्बॉब्वे, जांबिया, बोत्सवाना, अंगोला और नामीबिया हैं. इन देशों में हाथियों की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है.
जंगलों में 55,000 हाथियों की है क्षमता
ऐसे में जिम्बॉब्वे की वाइल्डलाइफ अथॉरिटी का कहना है कि हाथियों को मारने से एक ओर जहां भूख से तड़प रहे लोगों को खाना मिलेगा वहीं, दूसरी ओर वहां हाथियों की आबादी भी नियंत्रित रहेगी. बता दें कि जिम्बॉब्वे के जंगलों में 55 हजार हाथियों को संभालने की क्षमता है, मगर इस वक्त वहां हाथियों की संख्या 84 हजार से अधिक है. इसलिए हाथियों को मारने की एक ये भी वजह है.
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