Doomsday Glacier: तेजी से पिघल रहा अंटार्कटिका का ग्लेशियर, दुनियाभर में क्या होगा इसका असर?

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Doomsday Glacier: वैसे तो धरती पर जीवि‍त रहने के लिए पेड़ पौधे हो या कोई जीव सभी को सूरज की रौशनी की आवश्‍यता होती है, लेकिन यदि आपने कभी सोचा है कि सूर्य की पूरी गर्मी पृथ्‍वी तक पहुंचने लगे तो क्‍या होगा. पूरी पृथ्‍वी ही तबाह हो जाएगी. ऐसे में ही हमारे आसपास कुछ ऐसी चीजें हैं, जो इंसानों को सूरज की गर्मी से बचाए हुए हैं. उन्हीं में से एक है अटार्कटिका का ग्लेशियर.

लेकिन हाल ही में वैज्ञानिक ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है. उन्‍होंने बताया कि बता दें अंटार्कटिका का एक विशाल ग्लेशियर अगले 200 से 900 साल में पूरी तरह से पिघल जाएगा. इस ग्‍लेशियर को ‘डूम्सडे ग्लेशियर’ या थ्वाइट्स ग्लेशियर के नाम से जाना जाता है.

क्या है ग्लेशियर के पिघलने की वजह?

इस ग्लेशियर के पिघलने की सबसे बड़ी वजह ग्लोबल वार्मिंग है. बढ़ते तापमान के चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं.  वहीं, समुद्र का गर्म पानी भी ग्लेशियर को नीचे से पिघला रहा है, जिससे उसकी संरचना में बदलाव आ रहा है और यह तेजी से टूट रहा है.

खतरे में कई प्रजातियों का अस्तित्‍व

अंटार्कटिका का ग्लेशियर पिघलने से भारी तबाही मच सकती है. क्‍योंकि जैसे जैसे ये ग्‍लेशियर पिघलेगा वैसे-वैसे वैश्विक समुद्र का स्तर भी बढ़ता जाएगा, जिससे दुनिया के कई तटीय इलाके डूब जाएंगे और लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ेगा. वहीं, कई प्रजातियों का आस्तित्‍व भी खतरे में पड़ सकता है. इतना ही नहीं, ग्लेशियर के पिघलने से पृथ्वी की जलवायु और समुद्र के धाराओं में बड़े बदलाव आएंगे. इससे दुनियाभर में मौसम में अनिश्चितता बढ़ सकती है.

कैसे रुकेगा ग्‍लेशि‍यर का पिघलना?

हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस संकट को और भी गंभीरता से उठाया है. अध्ययन के मुताबिक, यदि वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो अंटार्कटिका का बर्फीला द्रव्यमान बड़े ही विचित्र रूप से तेजी से पिघलने लगेगा. ऐसे में उसे पिघलने से रोकने के सबसे आवश्‍यक है कि हम ग्लोबल वार्मिंग को रोकें.

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय

वहीं, ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए जीवाश्म ईंधन का कम से कम इस्‍तेमाल करना होगा. इसें साथ ही स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना होगा. वहीं, वैज्ञानिकों को भी इस ग्लेशियर के बारे में अभी और अध्‍ययन करने की आवश्‍यकता है, जिससे की इसके पिघलने की गति को धीरे किया जा सके.

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