भारत के कार्बन उत्सर्जन एवं हरित क्रांति के प्रयासों की अमेरिका में हुई सराहना: डॉ. दिनेश शर्मा

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UP News: उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सांसद डा. दिनेश शर्मा ने  राजधानी दिल्ली में आयोजित ’’ ग्रीन  फ्यूचर समिट 2024’’ में बोलते हुए कहा कि प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी के हाल की अमेरिका यात्रा में भारत के ऊर्जा संतुलन परिवर्तन के प्रयासों की सराहना की गई तथा यह भी कहा गया कि दुनिया को नष्ट करने में उनकी कोई रूचि नही है। डा. शर्मा के अनुसार जब प्रधानमंत्री ने  ऐसा कहा तो उनका इशारा ऐटम बम या परमाणु  बम की ओर नही था। वास्तव में उनका इशारा भारत में किये जा  रहे कार्बन उत्सर्जन एवं हरित क्रांति के प्रयासों की ओर था। यदि भारत की तुलना अन्य देशों से की जाय तो हमारा कार्बन उत्सर्जन दुनिया की नजर में नगण्य है। उन्होंने कहा कि ’’वैसे तो इस आयोजन में कई वक्ता अपना अलग अलग मत रखेंगे किंतु वाणिज्य का प्रोफेसर होने के नाते उनका मानना है भारतीय संस्कृति और दर्शन में दी गई  व्यवस्थाओं  मेें एक नई खोज दिखाई पड़ंती है। इसका प्रमुख कारण यह रहा है कि हमारी जीवनशैली का तारतम्य प्रकृति  से रहा है।

उन्होंने कहा कि आज हम सौर ऊर्जा की स्थापना की बात करते हैं। आज हम पवन जल विद्युत एवं  हरित हाईड्ोजन और परमाणु ऊर्जा के प्रवेश की बात करते है या हम हरित ऊर्जा संक्रमण तथा इससे संबंधित नौकरियों के स्रजन की बात करते हैं तो इन सारे भावों के पीछे भारतवर्ष अग्रणी क्यों बनता जा रहा है यह एक विचारणीय प्रश्न आता  है जो इसका उत्तर हमारे जीवन और रहन सहन की शैली में आता है। हमने वृक्षारोपण के कार्य को ही महत्व एवं गति नही दी बल्कि पेड़ों के कटान पर नियंत्रण करने की भी बात की।’’ सांसद शर्मा ने बताया कि ’’जब वे लखनऊ के महापौर थे तो उन्होंने कान्हा उपवन की योजना चलाई थी। वहां पर बने तालाब को परिमार्जित करके राधा सरोवर के नाम से उसे नया कलेवर देने को प्रयास किया इसके साथ ही श्रीकृष्ण  गोशाला की स्थापना की ।’’ उन्होंने लोगों की मानसिकता की ओर इशारा किया और कहा ’’लोगांे ने आवारा साड़ेंा के उत्पात को बताया जब  िक वे आवारा न होकर बेसहारा थे।े हमने इन बेशहारा सांड़ों के लिए नन्दीशाला बनाने का कार्य किया।आज मनुष्य पेड़ों को काटकर बन्दरों के घरों का उजाड़ दिया और फिर बंदरों के अतंक की बात करते हैं। बंदरों के लिए हमने हनुमान वाटिका बनवाई और उसका नाम ’सिद्धार्थ पशु पक्षी विहार ’ रखा।

हमने इस व्यवस्था को धर्म से जोड़ दिया और कहा कि जो लोग भगवान शंकर या भगवान हनुमान का आशीर्वाद लेना चाहते हैं उन्हें इन्हें भोजन देना चाहिए। इसके बाद दानदाताओं में होड़ लग गई और 10हजार गायों एवं नन्दी की गोशाला  तथा पशुपक्षियों की हनुमान वाटिका के लिए निगम की ओर से एक पैसा खर्च नही किया गया और व्यवस्थाएं संचालित होती रहीं।एक प्रकार से दानदाताओं की लाइन लगी रहती थी।इस कार्यक्रम को और गति देने के लिए आयुर्वेद से संबंधित लोगों को बुलाकार गोमूत्र और गाय के गोबर का सही उपयोग करने की सलाह दी।गोबर के टाइल्स बनाने के लिये प्रोत्साहित किया। इसके बाद के बचे गोबर से गोबर गैस प्लांट चलवाना शुरू किया तथा उससे पैदा होनेवाली बिजली को आसपास के गांवों में देना  शुरू किय। इसके बाद जो लोग यह धारणा फैला रहे थे कि यह तो हिंदुत्व का कार्यक्रम संचालित करने का प्रयास है वही लोग गोपाष्टमी में गायों के लिए भेाजन लाने की लाइन में लग गए। पहले धर्म से जोड़कर प्रकृति का  संरक्षण हमारी विधाओं में था।’’
सांसद शर्मा ने कहा कि ’’पर्यावरण संरक्षण की दिशा मे ंहम पेड़ों की पूजा करते हैं। हम जल का पूजन करते हैं तथा चूहे के संरक्षण की बात करते हैं और कहते हैं कि यह गणेश  की सवारी है। हाथी को गणेश  देवता मानते हैं तो नाग का पूजन उसे  दूध पिलाकर करते हैं। पीपल  की पूजा वास्तव के करने के पीछे  का भाव उससे प्राप्त होने वाली आक्सीजन से है ।बरगद की पूजा धागा बांधकर करने के पीछे भी उसके संरक्षण का भाव है।अभी हमने पितृ विसर्जन किया उसमें कौवो को खिलाने के पीछे हकीकत यह है कि कौवी भादों में गर्भधारण करती है और उसे अतिरिक्त भोजन की आवश्यकता होती है इसलिए हमने उसको देने वाले भोजन को पित्रो से जोड़ दिया।कौवा या अन्य प़क्षी पीपल या बरगद के फलों को खाते हैं और उनकी बीट से नये पीपल या बरगद के पेड़ उगते है। उन्होंने कहा कि धर्म के साथ व्यवस्थाओं को जोड़ने से प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन हो रहा है।

 

हमे प्रकृति के साथ जुड़ने की इसलिए आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन के कष्टकारी क्षणों को हमे न बिताना पड़े। इसके पीछे का भाव प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन स्थापित करना था।’’ डा. शर्मा ने कहा कि इसके विपरीत प्राकृतिक साधनों का विद्रोहन शुरू हुआ और वह इतना बढता गया कि प्रकृति के संसाधनों का  संतुलन बिगड़ने लगा। इसका प्रमुख कारण अवैध कटान तथा परंपरागत तरीकों को छोड़कर आधुनिकता की ओर बिना सोचे समझे बढ़ना भी है। जलवायु परिवर्तन में इनका भी असर रहता है। इसके कारण अधिक तापमान बढ़ने से कहीं तूफान आया तो कही सूखा पड़ा तो कहीं गर्म होता हुआ महासागर अभिशाप बनने लगा। यही नही पक्षी प्रजातियों की इसके कारण हानि होने लगी। तमाम पशु पक्षियों की प्रजातियां लुप्त होने लगी। करोना में गांवों की तरफ पलायन एक स्वस्थ वातावरण पाने के लिए हुआ। उनका कहना था कि जो हरित ऊर्जा संक्रमण का आज का कार्यक्रम यहां रखा गया है वह दुनिया के सामने उदाहरण है।यद्यपि हमारी आबादी दुनिया में 17 फीसदी है  इसके बावजूद वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भारत का योगदान केवल 4 प्रतिशत है। उन्होंने बच्चे के पैदा होने पर कुआ पूजन आदि का जिक्र करते हुए कहा कि विदेशों के विपरीत भारत की व्यवस्था में प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की व्यवस्था पहले से बनी हुई है। पाश्चात्य संस्कृति और भारत की संस्कृति में बहुत अधिक अंतर है। पाश्चात्य संस्कृति में जो कमाएगा वह खायेगा का मंत्र छिपा है जब कि भारतीय संस्कृति में जो कमाएगा वह खिलाएगा का भाव है। यहां तो भाव ’’सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का है।

 

सांसद शर्मा ने अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहा कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार जब कोई बच्चा पहले गुरूकुल जाता था तो उसे एक वृक्ष के लिए पौधारोपण करना आवश्यक था।ऋषि मुनियों ने वनस्पति के संरक्षण की बात की थी। उन्होंने संत देवरहा बाबा  के कथन को प्रस्तुत करते हुए कहा कि ’’बाबा वृक्षों के कटान के खिलाफ थे और यह कहते थे कि इन्हें मत काटो ये मेरे मित्र हैं तथा अकेले में मैं इन्ही से बात करता हूं। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में ऋषियों एवं मुनियों ने वृक्षों के संरक्षण एवं संवर्धन में महत्वपूर्ण सतत योगदान दिया था। उन्होंने पीपल के वृ़क्ष को आक्सीजन  उत्सर्जन का सिलिन्डर बताया। प्रधानमंत्री ने तो भारत के घरेलू उत्पाद से उत्सर्जन को 45 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य बनाया है। भारत ने 2070 तक शून्य उत्सर्जन के लिए अपने लक्ष्य को निर्धारित किया है। इसके लिए ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतो का उपयोग करने  और आधुनिक स्रोतों को कम करने का लक्ष्य है। कार्यक्रम में प्रसिद्ध पर्यावरण विद् प्रदीप ठाकुर श्री गोपाल अग्रवाल श्री विपिन सिंह वरिष्ठ पत्रकार श्री सुमित अवस्थी तथा भारी संख्या में संपूर्ण देश से आए प्रतिभागी उपस्थित थे कार्यक्रम के संचालक श्री राहुल देव थे।
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