Egypt Pyramid: मिस्त्र के पिरामिड दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित संरचनाओं में से एक हैं. दुनियाभर के पुरातत्वविदों और इतिहासकार इस पर शोध करते रहे हैं कि आखिरकार प्राचीन मिस्रवासियों ने पिरामिड बनाने के लिए किस तरह की निर्माण तकनीकों का प्रयोग किया होगा. दशकों से मिस्र के पिरामिडों के बारे में अलग-अलग सिद्धांत सामने आते रहे हैं. मिस्त्र के पिरामिड पर अब एक नई रिसर्च सामने आई है. नए रिसर्च के अनुसार, पिरामिड बनाने में वजन उठाने के लिए हाइड्रोलिक लिफ्ट टेक्नोलॉजी की मदद ली गई थी.
नई रिसर्च में दावा
नई रिसर्च में दावा किया गया है कि मिस्र के सबसे पुराने पिरामिड के निर्माण में काफी उन्नत तकनीक की मशीन का इस्तेमाल हुआ था. मशीन को चलाने के लिए पानी का इस्तेमाल होता था. ऑनलाइन जर्नल पीएलओएस वन में पब्लिश रिसर्च में सक्कारा में जोसर के मशहूर स्टेप पिरामिड के निर्माण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों का पता लगाने की बात बताई गई है. ये पिरामिड 13,189 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैला है और 62.5 मीटर ऊंचा है. 4,500 साल पुराना ये पिरामिड अपने समय की सबसे खास संरचनाओं में से एक है.
हाइड्रोलिक लिफ्ट तकनीक का इस्तेमाल
नई रिसर्च दावा करती है कि पिरामिड बनाने में हाइड्रोलिक लिफ्ट प्रणाली का इस्तेमाल हुआ था. अभी तक एक्सपर्ट पिरामिड निर्माण के दौरान भारी पत्थरों को सिसकाने के लिए परस्पर जुड़े रैंप और लीवर के इस्तेमाल का दावा करते रहे हैं. फ्रांस के सीईए पैलियोटेक्निक इंस्टीट्यूट के जेवियर लैंडरेउ का कहना है कि प्राचीन मिस्रवासियों ने भारी पत्थरों को हटाने के लिए पावर लिफ्टों के लिए पास की नहरों का इस्तेमाल किया होगा.
नए विश्लेषण के आधार पर पता चलता है कि पानी को दो शाफ्टों के जरिए पिरामिड में निर्देशित किया गया था, जिससे बड़े पत्थर के खंडों को ले जाने वाले फ्लोट को ऊपर और नीचे करने में मदद मिली. शोध के अनुसार, ‘प्राचीन मिस्रवासी अपनी अग्रणी हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग के लिए प्रसिद्ध हैं, जो सिंचाई के लिए नहरों और बड़े पैमाने पर पत्थरों के परिवहन के लिए नावों का प्रयोग करते थे.
पहेली रही है पिरामिड निर्माण की तकनीक
स्टेप पिरामिड को 2680 ईसा पूर्व में तीसरे राजवंश के फिरौन जोसर की अंत्येष्टि परिसर के रूप में बनाया गया था. पिरामिड को कैसे बनाया गया, आज तक एक्सपर्ट के लिए एक चुनौती बना हुआ है. नए रिसर्च हाइड्रोलिक लिफ्ट तकनीक की बात कहती है लेकिन शोधकर्ताओं के टीम का ये भी कहना है कि अभी आगे की जांच की जरूरत है. अभी ये भी देखा जाना बाकी है कि यह हाइड्रोलिक सिस्टम कैसे काम करती होगी और क्या उस समय क्षेत्र का वातावरण इस तरह की पद्धति के अनुकूल था.
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