क्या है एनाकोंडा रणनीति? जिसके सहारे ताइवान पर चीन कस रहा शिकंजा; जानिए पहली बार कब हुआ था इसका इस्तेमाल

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Taiwan-China Tension: चीन लंबे समय से ताइवान पर अपना दबदबा कायम करना चाहता है, लेकिन इसमें वो कामयाब नही हो पा रहा है. ऐसे में अब भारत के खिलाफ स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की रणनीति बनाने वाले चीन ने ताइवान की रणनीतिक घेरेबंदी करने की एक खास योजना बनाई है, इस प्‍लान को चीन ने एनाकोंडा स्ट्रैटजी नाम दिया है.

वहीं, हाल ही में एक प्रेस कॉनफ्रेंस में ताइवान के नौसेना कमांडर एडमिरल तांग ने दावा किया कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ताइवान के खिलाफ ‘एनाकोंडा रणनीति’ का इस्तेमाल कर रही है. बता दें कि 1861 से 1865 चले अमेरिकी गृह युद्ध में पहली बार लेफ्टिनेंट जनरल विनफील्ड स्कॉट ने इस रणनीति का इस्तेमाल किया था.

एनाकोंडा स्ट्रैटजी में क्या-क्या शामिल

चीन की एनाकोंडा रणनीति में साइबर हमले, मनोवैज्ञानिक रणनीति और सैन्य युद्धाभ्यास को शामिल किया गया है, जिससे वो पहले ताइवान की सुरक्षा को कमजोर करेगा और फिर उसकी ऊर्जा जरूरतों को निशाना बनाएगा. वहीं, ताइवान के भीतर भी भारी उथल-पुथल मचाने के लिए प्लान बना रहा है.

कैसे काम करती हैं एनाकोंडा स्ट्रैटजी?

यह रणनीति बिल्कुल वैसे ही काम करती है, जैसे एक एनाकोंडा अपने शिकार पर हमला करता है. दरअसल, एनाकोंडा सबसे पहले अपने शिकार को देखता है. इसके बार वो कई घंटो या कई दिनों तक अपने शिकार के इंतजार में एक अवस्था में पड़ा रहता है और जब शिकार उसके करीब पहुंचता है तो बहुत तेजी से हमला करता है. ऐसे में शिकार को बचने तक का मौका तक नहीं मिलता और एनाकोंडा उसे चारों तरफ से जकड़ लेता है, जिससे दम घुटने से उसकी जान चली जाती है.

नाकेबंदी करना रणनीति का अहम हिस्सा

एनाकोंडा की तरह ही चीन भी सबसे पहले ताइवान को घेरकर उसकी सप्लाई चैन को बाधित करना चाहता है. इसके बाद उसके अंदर अराजकता फैलाना का प्लान है, जिससे चीन के पूर्ण हमले से पहलें ही ताइवान ड्रैगन के आगे घुटने टेक दे.

एनाकोंडा रणनीति: क्या क्‍या कर सकता है चीन?

  • यदि चीन ताइवान पर सीधे हमला करने से बचेगा, तो वह उसके खिलाफ साइबर हमला कर सकता है और गलत सूचनाओं के आधार पर अराजकता फैला सकता है.
  • इसके अलावा, ताइवान की आर्थिक नाकाबंदी करके भी उसे घुटनों पर ला सकता है.
  • ताइवान की घेरेबंदी करके उसका दुनिया के अन्य देशों से संपर्क काट सकता है, जिससे ऊर्जा संकट भी खड़ा हो सकता है.
  • इसके अलावा, वो ताइवान के हरित ऊर्जा जैसे सोलर पावर प्लांट आदि को निशाना बना सकता है.

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