Indian soldiers: ‘साउथ अफ्रीका इंडियन लीजन (SAIL)’ द्वारा शनिवार को सैनिकों को सम्मानित करने के लिए वार्षिक स्मृति समारोह का आयोजन किया गया. डिट्सॉन्ग राष्ट्रीय सैन्य संग्रहालय में आयोजित इस कार्यक्रम में दक्षिण अफ्रीकी भारतीय मूल के स्वयंसेवकों को पिछली सदी के युद्धों में उनकी वीरता के लिए याद किया गया.
यह सम्मान समारोह दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों के सैन्य योगदान को दर्शाता है, जिनमें से ज्यादातर स्वयंसेवक थे और वो अक्सर सैन्य बेस के गार्ड या ट्रक ड्राइवर की भूमिका तक ही सीमित थे.
इन सैनिकों को किया गया सम्मानित
संगठन द्वारा युद्धों में भारतीय सेना और वायु सेना के साथ लड़ने वाले दक्षिण अफ्रीकी लोगों को भी सम्मानित किया गया, जिसमें वे सैनिक शामिल है जिन्होंने औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य और स्वदेशी ज़ुलु साम्राज्य के बीच 1879 के ज़ुलु युद्ध में और 20वीं सदी के अंत में दक्षिण अफ़्रीका में एंग्लो-बोअर युद्ध में लड़ाई लड़ी थी. वहीं, इन युद्धों में सहायक भूमिकाओं में अंग्रेजों के साथ लड़ने वाले भारत के कुछ सैनिक भी थे.
वहीं, इस कार्यक्रम में जिन लोगों को सम्मानित किया गया है, उनमें से ज्यादातर भारतीय मूल के दक्षिण अफ़्रीकी हैं, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और 11वें विश्व युद्ध में भाग लिया था.
समर्पण के साथ किया काम
इस कार्यक्रम का आयोजन एसएआईएल ने जोहान्सबर्ग नगर परिषद के सहयोग से किया था. कार्यक्रम के दौरान दक्षिण अफ्रीकी वायु सेना के सेवानिवृत्त सैनिक विनेश सेल्वन ने कहा कि समुदाय के ये बहादुर सदस्य रंगभेद की चुनौतियों के बावजूद अपने देश और अपने समुदाय की रक्षा के लिए सेना में शामिल हुए. सेल्वन ने कहा कि उन्हें निचले पदों पर रखे जाने के बावजूद भी उन्होंने समर्पण के साथ काम जारी रखा.’
सेल्वन ने कहा कि साल 1948 में जब अल्पसंख्यक श्वेत रंगभेदी सरकार सत्ता में आई, तब से भारतीयों को सशस्त्र बलों, वायु सेना और नौसेना में शामिल होने से रोक दिया गया, लेकिन साल 1974 में उन्हें यह अधिकार वापस मिल गया.