वाराणसी: उत्तर प्रदेश का वाराणसी शहर देश की आध्यात्मिक राजधानी के तौर पर जाना जाता है. वाराणसी को काशी, बनारस और कई अन्य नामों से जाना जाता है. वाराणसी को मोक्ष की नगरी या मोक्ष का द्वार के नाम से भी जाना जाता है. वाराणसी का सबसे प्राचीन नाम काशी ही है. पौराणिक कथाओं में इस बात का वर्णन है कि इसको देवों के देव महादेव ने बसाया था. मान्यता यह भी है कि यह पूरी दुनिया का सबसे प्राचीन शहर है, जो भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिका है.
काशी को लेकर कई मान्यताओं का वर्णन भी शास्त्रों में मिलता है. ऐसा कहा जाता है कि जीवन में एक बार काशी के दर्शन जरूर करना चाहिए. वहीं, मान्यता है कि यहां पर आकर अगर कोई अपने जीवन का आखिरी समय व्यतीत करता है तो उसको मोक्ष मिलता है. जिससे उसके पुनर्जन्म की श्रृंखला टूट जाती है. एक मान्यता यह भी है कि काशी से कभी भी गंगा जल या गिली मिट्टी अपने घर नहीं ले जाना चाहिए. आइए आपको बताते हैं क्या हैं इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं…
काशी से कभी घर ना लाएं ये चीजें
गंगा के तट पर बसे इस शहर को लेकर मान्यता है कि यहां से किसी को भी गंगा जल या गिली मिट्टी लेकर अपने घर नहीं जाना चाहिए. अमूमन जब लोग किसी धार्मिक शहर में जाते हैं तो वहां गंगा किनारे की गिली मिट्टी और गंगा जल को लेकर अपने घरों को जाते हैं और उसका प्रयोग विभिन्न कामों में करते हैं. वाराणसी भी आने वाले काफी लोग यहां से गंगा जल लेकर अपने घरों को जाते हैं जो मान्यताओं के अनुसार गलत है.
दरअसल, ऐसी मान्यता है कि काशी को मोक्ष नगरी कहा जाता है. जो भी इस शहर में अपने प्राण को त्यागता है उसको मोक्ष मिलता है. इसी के साथ उसे जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है. यही कारण है काशी में कई मोक्ष आश्रम भी बने हैं, जहां पर लोग अपने आखिरी दिनों को बीताते हैं. वे यहां अपनी मृत्यु तक ठहरते हैं और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं. मान्यता यह भी है कि अगर कोई किसी को काशी आने के लिए प्रेरित करता है, उसे पुण्य प्राप्त होता है. ठीक इसके उलट अगर कोई किसी को काशी से अलग करता है तो वह पाप का भागीदार होता है.
काशी से न लाएं गंगाजल
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार व्यक्ति कहीं से भी गंगा जल अपने घर ले जा सकता है, लेकिन वह काशी से गंगा जल घर लेकर नहीं जा सकता है. कथाओं में बताया गया है कि काशी से अगर आप गंगा जल या गिली मिट्टी लेकर अपने घर जाते हैं तो आप कई प्रकार के जीव जंतुओं को काशी से अलग कर रहे हैं. पानी और गिली मिट्टी में तमाम जीव-जंतु मौजूद होते हैं, जिनका काशी से साथ छूटता है, जिस कारण उस जीव की मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र बाधित होता है और ऐसा करना गलत माना जाता है.
छूटती है मृतक की काशी
उल्लेखनीय है कि काशी की मिट्टी, खासकर गंगा जल की गीली मिट्टी पर भी यही नियम लागू होता है. इसमें कई प्रकार के जीव और कीटाणु उपस्थित होते हैं. इसके अलावा कई लोगों का प्रतिदिन काशी में दाह संस्कार भी होता है, जिनकी राख को गंगा में विसर्जित किया जाता है. इस स्थिति मेंं अगर आप काशी से गंगा जल लेकर जाते हैं तो आप मृतक के अंश और राख को भी अपने साथ अपने घर ले आते हैं. इस कारण मृतक की काशी छूट जाती है और उसको मोक्ष नहीं मिलता है.
यही वहज है कि काशी घूमने आए व्यक्ति को अपने साथ वाराणसी से गंगाजल और गिली मिट्टी लेकर घर नहीं जाना चाहिए. ऐसा करने से कोई भी पाप का भागीदार होता है.
(अस्वीकरण: लेख में दी गई जानकारी सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित. द प्रिंटलाइंस इसकी पुष्टी नहीं करता है.)