Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सफलता का श्रेय तो सभी लेते हैं किन्तु विफलता का श्रेय कोई नहीं लेता। ‘ जो भी अच्छा हुआ वह मेरे कारण हुआ ‘ ऐसा कहने वाले अनेक लोग मिलेंगे किंतु ‘ जो बुरा हुआ वह मेरे कारण हुआ ‘ ऐसा कहने वाले नहीं मिलते। जीवन में जब आनन्द का, हर्षोल्लास का प्रसंग आता है तो अनेक लोग आपके आस-पास एकत्र हो जायेंगे, किन्तु जीवन में जब दुःख और कष्ट सहने का प्रसंग आता है तब मनुष्य अकेला ही उसे सहता है। मानव जीवन की यही सत्यता है।
भगवान ने श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन को और अर्जुन के निमित्त हम सबको आश्वसन दिया है कि- हे अर्जुन! बुराई का त्याग करके जिसने मेरा भजन शुरू किया है, उसके द्वारा कितना ही बुरा हुआ हो, उसका उद्धार करने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं। भगवान आश्वासन देते हैं-अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः। जीवन का एक रहस्य है कि मुख में भगवन्नाम का प्राकट्य होने के लिए भी पुण्य आवश्यक होता है। भगवान का नाम मुख में आने के लिए पुण्य का होना आवश्यक होता है।
कथा श्रवण, मंदिर जाकर भगवान का दर्शन, संतों का और भगवान का स्मरण यह सब अगर जीवन में होता है तो भगवान की असीम कृपा है,अन्यथा ऐसा संयोग जीवन में घटित होता ही नहीं है। यह भगवान की ही अत्यंत कृपा है कि हमें भागवत, रामायण, गीता और अनेक भक्तों के चरित्र श्रवण करने का शुभ अवसर मिलता है। हमारे अनेक संचित सत्कर्म है इसी कारण हमें भगवान का नाम प्रिय है। जिनके संचित पुण्य नहीं है, उन्हें लगता है की कथा में बैठने की अपेक्षा घूमना फिरना ठीक है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).