आज अमेरिका से ज्यादा भारत में हो रहा है डिजिटल बैंकिंग: डॉ. दिनेश शर्मा

Divya Rai
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Content Writer The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Lucknow News: वाणिज्य विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय में पुस्तक विमोचन एवं व्याख्यान कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री और सांसद डॉ. दिनेश शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद छात्र-छात्राओं को संबोधित किया. साथ ही उन्होंने भारत में डिजिटल बैंकिंग को लेकर भी बात की. इस दौरान डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि डिजिटल बैंकिंग इस देश की आत्मा बन चुका है. पिछले 9 साल में भारत में भी डिजिटलाइजेशन इतना तेजी से हुआ है कि आज अमेरिका से ज्यादा यहां पर डिजिटल बैंकिंग हो रहा है.

भारत बहुत सी चीजों में अमेरिका से आगे निकल गया है

दरअसल, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुस्तक विमोचन एवं व्याख्यान कार्यक्रम में शामिल होकर डॉ. दिनेश शर्मा ने छात्र-छात्राओं को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि जब कुछ नोटों का चलन बन्द कर दिया गया था तब लोग सोचते थे कि मुद्रा प्रणाली का क्या होगा. डिजिटल बैंकिंग ने उन सारे प्रश्नों का उत्तर दे दिया है. कोरोना के समय डिजिटल लेन देन एक फैशन बना. इस दौरान डॉ. दिनेश शर्मा ने एक फिल्म का हवाला देते हुए कहा कि यह फिल्म बहुत कुछ ग्रामीण परिवेश से संबंधित थी जिसमें डाकिया को डाक लाते दिखाया गया था. पहले मनीआर्डर जब भेजा जाता था तो यह भरोसा नहीं होता था कि यह कितने दिन में पहुंचेगा. आज डिजिटलाइजेशन के कारण बहुत बड़ा बदलाव आया है और समय के साथ परिस्थितियां बदल गई हैं तथा समय के साथ बदलाव हिन्दुस्तान की पहचान बन चुका है. उन्होंने कहा कि आज भारत डिजिटलाइजेशन में बहुत सी चीजों में अमेरिका से आगे निकल गया है.

डॉ. शर्मा ने कहा कि जब अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर आक्रमण हुआ था तो उसके बाहर एक मूर्ति के माध्यम से “सर्वाइवल आफ दि फिटेस्ट” का संदेश दिया गया था यानी वही जीवित रहेगा जो शक्तिशाली होगा. उसके बाद एक पोस्टर लगा था जिसमें अंग्रेजी में लिखा था कि भगवान मुझे बचाये. भारत मे ऋषि परंपरा एवं कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था ही भारत की मजबूती और जीडीपी का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती रही है. उन्होंने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोसेसरों के द्वारा किये जा रहे कुछ शोध भविष्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. लखनऊ विश्वविद्यालय के सभी विभाग अपने पठन पाठन प्रक्रिया में चर्चित रहे हैं.

डॉ. शर्मा ने एक घटना का जिक्र किया जब तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा ने उनसे लखनऊ विश्वविद्यालय के संबंध में लम्बी चर्चा की थी, क्योंकि उन्होंने भी वहां शिक्षा ग्रहण करने के बाद वहां पर अध्यापन कार्य किया था. उनका कहना था कि यदि डा. शंकरदयाल शर्मा आज होते और उन्हें पता लगता कि नैक में लखनऊ विश्वविद्यालय को ए डबल प्लस मिला है तो शायद वे यहां के शिक्षकों को बुलाकर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन कर देते. इसके पीछे हर वाइस चांसलर का योगदान होता है. अच्छे काम का श्रेय भी कुलपति को मिलता है और किसी गलत निर्णय का अपयश भी मिलता है और नैक में उच्च स्थान लाने के लिए वर्तमान कुलपति की प्रशंसा की जानी चाहिए.

सांसद शर्मा ने कहा कि इस बार यूनिवर्सिटी में नया प्रयोग हुआ जिसमें विदेशी छात्र छात्राओं ने दीपावली मनाई. वास्तव में सांस्कृतिक गतिविधियों का आदान प्रदान होना चाहिए और यह पहल लखनऊ विश्वविद्यालय ने की है. उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में भी विभिन्न संस्कृतियों के आदान-प्रदान की बात है. विद्युत जनों द्वारा सुझाव दिया गया है कि महत्वपूर्ण पर्वों पर विदेशी छात्र छात्राओं को जोड़ने का प्रयास और उनकी सहभागिता किया जाना चाहिए. डॉ. शर्मा ने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय के नये अध्यापकों के द्वारा प्रारंभ की गई नई परंपराओं का स्वागत किया जाना चाहिए. प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने का एक तरीका बराबर निकलने वाले की पठन सामग्री का नुकसान पहुंचाया जाए जब की दूसरा तरीका यह है कि उससे अधिक मेहनत करके आगे बढ़ा जाए. प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होनी चाहिए.

इस अवसर पर डॉ. शर्मा ने कहा कि अनुसंधानों को केन्द्र के किन किन विभागों में भेजा जाना चाहिए जिससे देश उनका लाभ ले सके. उन्होंने बताया कि दिसंबर में वे हिंदी संसदीय समिति की बैठक के अंतर्गत भारत सरकार के 22 मंत्रालयों को लखनऊ में बुला रहे हैं. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों से इसमें आने का भी आह्वान किया. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय जिस प्रकार से तेजी से प्रगति कर रहा है उसमें और इजाफा करने के लिए शिक्षक अधिक से अधिक प्रोजेक्ट बनाकर उत्तर प्रदेश एवं भारत सरकार को दें. साथ में नई तकनीकियों को या शोध को भारत सरकार को अवश्य भेजें. उन्होंने कहा कि बजट बनाने की तैयारी चल रही है इसलिए एमएसपी के संबंध में जो आपकी सोच हो उसे केन्द्र सरकार को जरूर भेजें.

डॉ. शर्मा ने सुझाव दिया कि अपनी शोध से संबंधित पुस्तक भेजने की जगह नई शोध से संबंधित दो तीन पेज का नोट वित्त तथा अन्य मंत्रालयों को भेजें. उन्होंने इस अवसर पर नये शेाध के साथ अन्य क्रिया कलाप करने का भी सुझाव दिया और कहा कि वाणिज्य विभाग के लोग साउथ में वाणिज्य संस्थानों में ले जा सकते हैं. एक्सचेंज प्रोग्राम भी आयोजित किये जा सकते हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय आर्थिक मंथन का केन्द्र बने इसके लिए भी प्रयास किये जाने चाहिए.

डॉ. शर्मा ने बताया कि किस प्रकार कोरोना काल में उन्होंने न केवल डिजिटल शिक्षण की व्यवस्था की बल्कि 78 हजार लेक्चर की एक डिजिटल लाइब्रेरी भी बनाई. आईआईटी खड़गपुर के लोग आए और उन्होंने एमओयू पर हस्ताक्षर करने की पेशकश की और कहा कि इन्हें वे अपने यहां लागू करेंगे. ऑस्ट्रेलिया के राजदूत भी एमओयू पर हस्ताक्षर करने के लिए आए. उनका कहना था कि पद के साथ प्रतिष्ठा नहीं मिला करती, बल्कि प्रतिष्ठा पाने का एक ही तरीका सदगुणों का अपने अन्दर विकास करना है. यदि किसी शिक्षक ने समर्पित भाव से अपने विद्यार्थियों को पढ़ाया है तो उसे सम्मान अवश्य मिलेगा. उन्होंने यह भी कहा कि जो मिले उसी पर संतुष्ट रहने पर कभी भी परेशानी नहीं आएगी.

इस अवसर पर कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय प्रोफेसर आलोक कुमार राय जी, विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर एसके द्विवेदी जी, वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राममिलन जी, प्रोफेसर राममिलन जी, डॉ. अवधेश कुमार त्रिपाठी जी, डॉ. अरविंद कुमार जी, डॉ. अनूप सिंह जी, डॉ. सुनीता श्रीवास्तव जी, डॉ. रचना मुज्जू जी तथा तीनों पुस्तकों के लेखक प्रोफेसर सोमेश शुक्ला डॉ. अमित मिश्रा आदि उपस्थित रहे.

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