Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, पार्थ का अर्थ होता है पुरुषार्थ। योगेश्वर कृष्ण भगवान की कृपा का नाम है। भगवान उनकी ही मदद करते हैं जो दूसरों की मदद करते रहते हैं। हमारा जीवन सफल हो, बुराइयों पर हमारी विजय हो, इसके लिए युद्ध तो हमें ही करना पड़ेगा। सबसे पहले पुरुषार्थ का सेतु हमें बनाना पड़ेगा और उसके ऊपर भगवान राम खड़े रहेंगे। भगवान कहते हैं मैं, जहां आकर खड़ा रहता हूं उनसे पूर्व आप पुरुषार्थ के सेतु का निर्माण करो।
आप मुझे बताओ तो सही, मेरे पांव मैं कहां टिकाऊं? मेरे पांव टिकाने के लिए जगह तो चाहिए। आप पुरुषार्थ करो,मैं आ सकूं, मैं खड़ा रह सकूं। एक बार में आ जाऊंगा तो फिर तेरे लिए सब रास्ते सेतु बन जायेगे, मरण को मंगलमय बनाना है, तो जीवन मंगलमय बनाओ, जीवन को मंगलमय बनाना है तो आचरण मंगलमय बनाओ, आचरण मंगलमय बनाने से व्यवहार मंगलमय बनता है, व्यवहार मंगलमय हो इसीलिए मन को मंगलमय बनाना होगा तथा मन को मंगलमय बनाने के लिए आंखें मंगलमय होनी चाहिए। तभी अंतिम परीक्षा में सफलता प्राप्त होगी।
यदि आंख, कान, रसना, वाणी पर संयम नहीं है तो ठोस परिवर्तन की आशा भी नहीं करना चाहिए। मनुष्य अपनी दृष्टि पर संयम नहीं रखेगा तो अंतःकरण पर संयम रखना संभव नहीं है। वह फिर अंतःकरण (मन) को विकृत होने से नहीं बचा पायेगा। जीवन सुधारने के लिए इन्द्रियों को पवित्र करना है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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