Bangladesh: मंगलवार को बांग्लादेश में एक अदालत ने हिंदू समुदाय के नेता और इस्कॉन के चिन्मय कृष्ण दास प्रभु को जेल भेजने का आदेश दिया. चटगांव की छठे मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट काजी शरीफुल इस्लाम की कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश आज सुबह करीब 11.45 बजे जारी किया.
स्थानीय मीडिया के अनुसार
मालूम हो कि चिन्मय प्रभु बांग्लादेश में हिंदू समूह सम्मिलित सनातनी जोत के नेता भी हैं. बांग्लादेश की स्थानीय मीडिया के अनुसार, कोर्ट में जब उन्हें सजा सुनाई जा रही थी, इस दौरान उनके समर्थकों ने अदालत में ही उनके पक्ष में नारेबाजी शुरू कर दी.
बांग्लादेश पुलिस ने सोमवार को देशद्रोह और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में चिन्मय प्रभु को ढाका एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया था. इसके खिलाफ हिंदू समुदाय के लोग ढाका की सड़कों पर उतर पड़े और जाम लगा दिया.
चटगांव जाने के लिए चिन्मय प्रभु हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पहुंचे थे. जहां से गिरफ्तार कर पुलिस उनको जासूसी शाखा के कार्यालय ले आई. इस्कॉन के सदस्यों ने कहा कि पुलिस ने कोई गिरफ्तारी वारंट नहीं दिखाया. चिन्मय प्रभु ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों के विरोध में कई रैलियां की हैं. इन रैलियों में उन्होंने लगातार अंतरिम सरकार के खिलाफ हमला बोला है. चिन्मय प्रभु बांग्लादेश में सनातन जागरण मंच के प्रवक्ता के रूप में भी काम कर रहे हैं.
दर्ज हो चुका है देशद्रोह का मुकदमा
मालूम हो कि 30 अक्तूबर को बांग्लादेश में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के आरोप में देशद्रोह अधिनियम के तहत चिन्मय कृष्ण दास प्रभु सहित 19 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है. आरोप है कि 25 अक्तूबर को चटगांव के लालदीघी मैदान में सनातन जागरण मंच ने आठ सूत्री मांगों को लेकर एक रैली की थी. इस दौरान एक चौक पर स्थित आजादी स्तंभ पर कुछ लोगों ने भगवा ध्वज फहराया था. इस ध्वज पर आमी सनातनी लिखा हुआ था. इसे लेकर चिन्मय कृष्ण दास पर राष्ट्रीय झंडे की अवमानना व अपमान करने का आरोप लगाया गया है.
घटनाक्रम पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने जताई नाराजगी
इस घटनाक्रम पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा, “यह निंदनीय है कि एक लोकतांत्रिक देश टूट रहा है और तानाशाही की तरफ बढ़ रहा है. यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह एक खुले लोकतंत्र की अहमियत को समझे. दुर्भाग्य है कि हमारे पड़ोसी लोकतांत्रिक सिद्धांतों से भटक गए हैं. यह बांग्लादेश के नागरिकों की जिम्मेदारी है कि वह फिर से एक लोकतांत्रिक देश की स्थापना करें, जहां सभी नागरिकों के पास जरूरी अधिकार हों और वह अपना जीवन निर्वाह अपनी जरूरतों और मान्यताओं के अनुसार कर सकें.”