सड़क हादसों में जा रही प्रतिवर्ष लाखों जान, बचाव के लिये यातायात नियमों का करें सम्मान

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सितंबर माह के आखिरी सप्ताह में उत्तर प्रदेश के कन्नौज में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर सैफई मेडिकल कालेज के तीन युवा चिकित्सकों सहित पांच लोगों की मौत हो गई. यह घटना न केवल दिल को झकझोरने वाली है, बल्कि ऐसा आघात है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती. यदि ये चिकित्सक सुरक्षित होते तो अपने जीवनकाल में न जाने कितनी लोगों की जीवनरक्षा करते, लेकिन सड़क हादसे में स्वयं उनकी जान चली गई. यह दुखद तथ्य है कि पूरे देश में सड़क दुर्घटनाओं में सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश में होती हैं. हालांकि, अधिकांश दुर्घटनाएं केवल इस कारण होना पाया जाता है क्योंकि यातायात नियमों का पालन नहीं किया गया.

ताजा प्रमाण यह हादसा है जिसमें चिकित्सकों की जान गई. आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर वाहनों की गति सीमा अधिकतम सौ किमी प्रति घंटा है, लेकिन जिस वाहन पर दुर्घटना के शिकार हुए चिकित्सक सवार थे, उसकी गति 150 किमी प्रति घंटा थी और इसी के कारण चालक वाहन पर नियंत्रण नहीं रख पाया और जोरदार टक्कर के बाद वाहन का एयरबैग खुलने के बाद भी जानें नहीं बच सकीं. यह विडंबना ही है कि आयेदिन सड़क दुर्घटनाओं की खबरें आते रहने के बाद भी लोग यातायात नियमों के पालन को लेकर सचेत नहीं होते. ऐसे सड़क हादसों में प्रतिवर्ष न जाने कितनी जिंदगियां काल के गाल में असमय समा जाती हैं.
जान गंवाने वालों में ऐसे लोगों की संख्या अच्छी-खासी संख्या ऐसे लोगों की होती है जिन पर अपने परिवार ही नहीं, समाज और देश की अपेक्षाओं का भार भी होता है. लेकिन, पल में ये मूल्यवान जाने चली जाती हैं. इससे होने वाले भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक नुकसान को पूर्णतः रोका जाना भले ही संभव न हो, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं की लगातार बढ़ती संख्या पर अंकुश लगाना आवश्यक हो गया है. सड़क हादसों के कारण जान गंवाने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ती ही जा रही है. पिछले वर्ष यानी 2023 में सड़क हादसों में 1.73 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. यानी हर दिन औसतन 474 और हर तीन मिनट में एक जान गई.
ये आंकड़े राज्यों ने केंद्र सरकार को दिए हैं. जब से केंद्र सरकार ने सड़क हादसों के कारणों और उनकी गंभीरता को समझने के लिए आंकड़े जमा करने शुरू किए हैं, तब से लेकर अब तक सबसे ज्यादा मौतें इसी साल हुई हैं. पिछले साल सड़क हादसों में करीब 4.63 लाख लोग घायल हुए थे. यह 2022 के मुकाबले 4 प्रतिशत अधिक है. इन आंकड़ों से साफ है कि सड़क हादसों में घायल होने वालों की संख्या बढ़ रही है. साल 2022 में सड़क हादसों में 1.68 लाख लोगों की मौत हुई थी. यह जानकारी सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट में दी गई थी. वहीं, एनसीआरबी के मुताबिक 2022 में सड़क हादसों में 1.71 लाख लोगों की जान गई थी.

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम और तेलंगाना समेत कम से कम 21राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2022 के मुकाबले 2023 में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या बढ़ी है. हालांकि, आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, केरल और चंडीगढ़ जैसे राज्यों में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या में मामूली गिरावट आई है. सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुई हैं. यहां पिछले साल सड़क हादसों में 23,652 लोगों की जान गई। इसके बाद तमिलनाडु में 18, 347, महाराष्ट्र में 15,366, मध्य प्रदेश में 13,768और कर्नाटक में 12,321 लोगों की मौत सड़क हादसों में हुई. हालांकि सड़क हादसों में घायल होने वालों की लिस्ट में तमिलनाडु सबसे ऊपर है.
यहां 72,262 लोग सड़क हादसों में घायल हुए. इसके बाद मध्य प्रदेश में 55,766 और केरल में 54,320 लोग सड़क हादसों का शिकार हुए. पिछले साल मरने वाले करीब 44 प्रतिशत लोग (करीब 76,000) दोपहिया वाहन सवार थे। यह रुझान पिछले कुछ सालों से जारी है। पिछले साल मरने वाले करीब 70 फीसदी दोपहिया सवारों ने हेलमेट नहीं पहना था. सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अब वक्त आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें दोपहिया सवारों की मौतों को कम करने के लिए ठोस कदम उठाएं. शहरों और गांवों में ज्यादातर लोग आने-जाने के लिए दोपहिया वाहनों का ही इस्तेमाल करते हैं. हालांकि इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता कि सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाला व्यक्ति किस वाहन पर सवार था.
वास्तव में साइकिल सवार से लेकर ट्रक आदि बड़े वाहन चालकों समेत सड़क पर चलने वाले सभी लोगों को अपनी और दूसरों की जान की कीमत समझनी होगी. यातायात नियमों को धार्मिक आदेश मानकर उनका संपूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करना होगा. हेलमेट या सीटबेल्ट केवल इस भय से लगाने की आदत छोड़नी होगी कि कहीं चालान न कट जाए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्व के कुल वाहनों में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है, जबकि कुल सड़क दुर्घटनाओं में हमारी हिस्सेदारी बहुत अधिक है. सड़क हादसों की यह बड़ी संख्या तब है जबकि देश में प्रतिव्यक्ति वाहनों की संख्या दुनिया के अनेक देशों के मुकाबले बहुत कम है. माना जा रहा है कि आगामी दशकों में भारत जैसे-जैसे आर्थिक विकास की राह पर आगे बढ़ता जाएगा,
देश में वाहनों की संख्या भी बढ़ती जाएगी. किसी के घर में नए वाहन का आना हमारे यहा सौभाग्य और उन्नति का प्रतीक माना जाता है. लेकिन सड़कों पर हादसों के कारण कई बार खुशियों का कारण बने वाहन, दुख और दर्द देने का कारक बन जाते हैं. प्रत्येक जान कीमती है और उसकी सुरक्षा के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। इसमें सरकार और यातायात नियम प्रवर्तक एजेंसियों की बड़ी जिम्मेदारी बनती है, लेकिन साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. विशेषकर नाबालिकों को वाहन चलाने की प्रवृत्ति पर पूर्णतः अंकुश लगाने की आवश्यकता है. यदि विभिन्न स्तरों पर जिम्मेदारी का परिचय दिया गया, तभी प्रतिवर्ष निरंतर बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं की संख्या पर अंकुश लगाया जा सकेगा.
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