Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रकृति के गुणों से वशीभूत होकर जीव कर्म करने के लिये मजबूर है, जब तक शरीर है, कर्म होते ही रहते हैं, कर्म से बचने का उपाय नहीं है किन्तु कर्म के बंधन से बचने के लिये उपाय है। प्रश्न बनता है क्या करें? तब भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- तू यज्ञ कर्म कर, अपने कर्म को तू यज्ञ बना।
अपने कर्मों द्वारा भगवान की पूजा कर। तो ईश्वर के निमित्त कर्म हो, फल की आसक्ति से रहित कर्म हो, श्रेष्ठतम ढंग से किया हुआ कर्म हो, तब वह कर्म यज्ञ का रूप ले लेता है जब कर्म यज्ञ का रूप ले लेता है तो वह कर्म बांधता नहीं है. भागवत धर्म आध्यात्मिक चिंतन की दृष्टि से बड़ा ही अनूठा धर्म है।
उसमें इतनी विशालता है कि वह अपने आराध्य तक पहुंचने के लिये आराधक को अपनी रुचि के अनुसार कोई भी पूजा मार्ग अपनाने की अनुमति देता है, क्योंकि हमारे महर्षियों ने तत्व चिंतन के द्वारा सिद्ध किया है कि सत्य और ईश्वर एक ही है। भले ही हम उन्हें अपनी रुचि के अनुसार किसी भी नाम से पुकारें।
नाम भिन्नता से उसके एकत्व में कोई अंतर नहीं आता। हमारा धर्म इस बात को स्वीकार करता है कि अन्य धार्मिक विद्या से भी ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है। केवल आराध्य के प्रति दृढ़ विश्वास आवश्यक है।nजो धर्म मनुष्य को आहार, निद्रा, आदि पशु सामान्य धरातल से ऊपर उठता है, वस्तुतः वही धर्म है।
निश्चित ही भारत ऐसा राष्ट्र है जिसकी भूमि पर धर्म पनपते रहे हैं। यह उसकी आध्यात्मिक शक्ति है। भारतीय महर्षियों की दृष्टि से सच्चा धर्म या सच्ची संस्कृति वही है जो मानव के ऐहिक कल्याण तथा मोक्ष का साधन उपस्थित करता है। प्रत्येक मानव हृदय में ईश्वर का वास होने के कारण यहां न कोई उच्च है और न कोई निम्न, सब समान है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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