Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ‘सुखं में भूयात्’ भीतर की चाह यही कहती है। परन्तु हम अन्धेरे में उलझे रहते हैं रास्ता नहीं मिलता। प्रकाश हो तो मार्ग दिखाई दे न? द्वार दिखें तो बाहर निकल सके न? भागवत अध्यात्म दीप है। प्रकाश करेगा।कथा जो भागवती गंगा भी कहा जा सकता है। कथा को गंगा की उपमा दी। श्रीरामायणजी भी लिखा है-
पूंछेहु रघुपति कथा प्रसंगा ।
सकल लोक जग पावनि गंगा।।
उस गंगा को तो भगीरथ जी ले आये पृथ्वी पर। लेकिन कथा गंगा को भक्त लाये। भाव से, संकल्प से, प्रेम से। वह गंगा विष्णु के चरण से निकली इसलिए विष्णुपदी मानी गई जबकि कथा गंगा विष्णु के मुख से निकली इसलिए विष्णु मुखी कहलाई। जो भगवान के मुख से निकला वही है भागवत। जो तपस्वी है वही है सज्जन। सज्जन बनने हेतु ही तो हम भागवत भागीरथी में निमज्जन कर रहे हैं। दुःखालय हैं संसार, जब तक स्वार्थ में जीते हैं तब तक संसार में दुःख ही है।
संसार से सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। फिर भी हम उसमें आसक्त हैं। यदि प्रेम होगा, परमार्थ होगा तो भगवान् भी अवश्य आयेंगे। भगवान् आनंद सिंधु , सुखी राशि हैं। भगवान शान्त स्वरूप हैं। स्वार्थ में संघर्ष, विषाद और दुःख है। यदि हमें प्रसाद चाहिए, आनंद चाहिए तो परमार्थ परायण बनें। प्रेमी ही परमार्थ पारायण हो सकता है। भागवत प्रभु परायण बनाने वाली पारायण है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).