इसरो ने रचा इतिहास: सफलतापूर्वक हुई उपग्रहों की ‘डॉकिंग’, ऐसा करने वाला चौथा देश बना भारत

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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ISRO Spadex Docking: अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत लगातार नए नए कारनामें कर इतिहास रच रहा है. इसी बीच देश ने एक और लंबी छलांग लगाकर विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है. दरअसल, इसरो ने दो उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया है. ऐसे में अब अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला भारत चौथा देश बन गया.

बता दें कि यह प्रौद्योगिकी भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं जैसे चंद्रमा पर भारतीय मिशन, चंद्रमा से नमूने वापस लाना, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) का निर्माण और संचालन आदि के लिए जरूरी है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार को ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट’ (स्पेडेक्स) के तहत उपग्रहों की ‘डॉकिंग’ सफलतापूर्वक की.

12 जनवरी को इसरों से शुरु किया था परीक्षण

इस दौरान इसरो ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा कि भारत ने अंतरिक्ष इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है. सुप्रभात भारत, इसरो के स्पेडेक्स मिशन ने ‘डॉकिंग’ में ऐतिहासिक सफलता हासिल की है. इस क्षण का गवाह बनकर गर्व महसूस हो रहा है.’ वहीं, इससे पहले 12 जनवरी को इसरों ने उपग्रहों को ‘डॉक’ करने के परीक्षण के तहत दो अंतरिक्ष यान को तीन मीटर की दूरी पर लाकर और फिर सुरक्षित दूरी पर वापस भेजा था.

क्‍यों अहम है डॉकिंग…

बता दें कि इसरो ने 30 दिसंबर 2024 को ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट’ (स्पेडेक्स) मिशन को सफलतापूर्वक शुरू किया था. इस दौरान इसे रात 10 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र यानी शार से स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) लॉन्च किया गया था. इस मिशन की कामयाबी भारतीय अंतरिक्ष केंद्र की स्थापना और चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए अहम साबित होगी.

क्‍या है डॉकिंग प्रक्रिया, और इसकी आवश्‍यकता?

मिशन निदेशक एम जयकुमार के मुताबिक, 44.5 मीटर लंबा पीएसएलवी-सी60 रॉकेट दो अंतरिक्ष यान चेजर (एसडीएक्स01) और टारगेट (एसडीएक्स02) लेकर गया है. इसरो के अनुसार, जब अंतरिक्ष में कई ऑब्जेक्ट होते हैं और उन्‍हें किसी खास उद्देश्य के लिए एक साथ लाने की आवश्‍यकता होता है, तो डॉकिंग की जरूरत होती है.

दरअसल, डॉकिंग वह प्रक्रिया है जिसके मदद से दो अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट एक साथ आते हैं और जुड़ते हैं. यह कई तरीको का उपयोग करके किया जाता है. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अंतरिक्ष स्टेशन पर चालक दल के मॉड्यूल स्टेशन पर डॉक करते हैं, दबाव को बराबर करते हैं और लोगों को स्थानांतरित करते हैं.

इसरों के इस मिशन के फायदे

  • बता दें कि भारत की साल 2035 में अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना है. ऐसे में इस मिशन की सफलता इसके लिए अहम है.
  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में पांच मॉड्यूल होंगे जिन्हें अंतरिक्ष में एक साथ लाया जाएगा.  जिनमें पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च किया जाना है.
  • वहीं, यह मिशन चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष उड़ानों के लिए भी अहम है. क्‍योंकि यह प्रयोग उपग्रह की मरम्मत, ईंधन भरने, मलबे को हटाने और अन्य के लिए आधार तैयार करेगा.
  • इसके साथ ही यह तकनीक उन मिशनों के लिए अहम है, जिनमें भारी अंतरिक्ष यान और उपकरण की जरूरत होती है, जिन्हें एक बार में लॉन्च नहीं किया जा सकता.

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