Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीरामकथा मानवता का मनोविज्ञान है। अपने बिखरे हुए मन को,अपनी बिखरी हुई चेतना को, किस प्रकार जोड़ सकते हैं? अखंड कर सकते हैं और अखंड की आराधना कर सकते हैं। यह पूज्य श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्रीरामचरितमानस में बताया है।
जो वास्तव में रहे नहीं प्रतीतिमात्र हो, ऐसी झूठी चीज का नाम माया है। माया वास्तव में शुद्ध चैतन्य में है ही नहीं।आस्तिक अपनी आस्तिकता को केवल मान्यता न माने। अनुभूति की यात्रा शुरू कर दे और नास्तिक केवल अपनी नास्तिकता को मान्यता न रहने दे और अनुभूति की ओर यात्रा आगे शुरू करें।
भगवान श्रीराम कहते हैं कि फल की लालसा से, फल के लिए, फल की इच्छा से कर्म करना ठीक नहीं है। लेकिन आप अकर्मण्य न हो इसलिए कर्म करते रहो। क्योंकि कर्म करने में आपका अधिकार है। कर्म करने में आप स्वतंत्र हैं।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).