Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सुखी मनुष्य से प्रेम, दुखियों के प्रति दया, पुण्यात्माओं के प्रति प्रसन्नता और पापियों के प्रति उदासीनता की भावना से चित्त प्रसन्न होता है। जगत के सारे सुखी जीवों के साथ प्रेम करने से चित्त का ईर्ष्या मल दूर होता है, डाह की आग बुझ जाती है।
संसार में लोग अपने को और अपने आत्मीय स्वजनों को सुखी देखकर प्रसन्न होते हैं, क्योंकि वे उन लोगों को अपने प्राणों के समान प्रिय समझते हैं। यदि यही प्रिय भाव सारे संसार के सुखियों के प्रति अर्पित किया जाये तो कितने आनन्द का कारण हो। दूसरे को सुखी देखकर जलन पैदा करने वाली वृत्ति का नाश हो जाये।
दुःखी प्राणियों के प्रति दया करने से पर अपकार रुप चित्त मल नष्ट होता है। मनुष्य अपने कष्टों को दूर करने के लिये किसी से भी पूछने की आवश्यकता नहीं समझता, भविष्य में कष्ट होने की संभावना होती है। पहले से उसे निवारण करने की चेष्टा करने लगता है। यदि ऐसा ही भाव जगत के सारे दुःखी जीवों के साथ हो जाय तो अनेक लोगों के दुःख दूर हो सकते हैं।
यदि हम सब दुःखी पीड़ित लोगों के दुःख दूर करने के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने की प्रवल भावना से मन सदा ही प्रफुल्लित रह सकता है। धार्मिकों को देखकर हर्षित होने से दोषारोप नामक मन का आसूया मल नष्ट होता है, साथ ही धार्मिक मनुष्य की भांति चित्त में धार्मिक वृत्ति जागृत हो उठती है। आसूया के नाश से चित्त शांत होता है।
पापियों के प्रति उपेक्षा करने से चित्त का क्रोधरूप मल नष्ट होता है। पापों का चिंतन न होने से उनके संस्कार अंतःकरण पर नहीं पड़ते। किसी से भी घृणा नहीं होती। इससे चित्त शांत रहता है। इस प्रकार इन चारों भावों के बारंबार अनुशीलन से चित्त की राजस, तामस वृत्तियां नष्ट होकर सात्विक वृत्ति का उदय होता है और उससे चित्त प्रसन्न होकर शीघ्र ही एकाग्रता का लाभ कर सकता है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).