Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, साधु का अर्थ है जिसने अपने लिये जीना छोड़ दिया। साधु का अर्थ है जिसने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। जो समाज और राष्ट्र के लिये जी रहा है वह साधु समाज की लायबेलीटी नहीं है, एसेट है। यदि साधु ऐसा है तो साधुओं की बड़ी संख्या बहुत बड़ा काम कर सकती है।
जहां जिस गांव में मंदिर है, उस मंदिर को कोई संभालने वाला नहीं है तो साधु वहां जाकर बैठ जाये, सफाई करे, बच्चों को बुलावे, लोगों को बुलावे। प्रार्थना सिखावे, करावे, अच्छी बातें सुनावे, लोगों में सद्विचारों को प्रगट करे। संत साधु जो है वह भगवान की सेना है। करीब पचास लाख साधु हैं इस देश में। यह बहुत बड़ी सेना है। उन साधुओं को ही यह सोचना है कि मैं ठाकुर जी का सैनिक हूं।
लेकिन साधु में होना चाहिए 1- कठोर परिश्रम 2- मानवतावादी धर्म। राष्ट्र के विकास के लिये धर्म भी बहुत बड़ा योगदान कर सकता है, लेकिन वह धर्म मानवतावादी हो उसके केंद्र में मानव हो।शुभ भावना से प्रेरित होकर कोई पुरुषार्थ करे तो उसका फल जरुर मिलेगा। अच्छे काम में ठाकुर जी की कृपा साथ होती है। आप पार्थ बनो और पुरुषार्थ करो। श्रीकृष्ण आपके रथ के सारथी बनकर आपका मार्गदर्शन करेंगे।
जहां पार्थ पुरुषार्थ अर्जुन हो और जहां कृष्ण यानि भगवद् कृपा हो, वहां विजय निश्चित है, ये गीता के वचन है। जब तक तृष्णा की खाद से वृक्ष उगते रहेंगे तब तक मानव सुख शांति के फल फूलों को वसुधा पर हस्तगत नहीं कर पायेंगे। रावण की लंका सोने की थी लेकिन रामायण में कहीं ऐसा नहीं मिलता कि एक दो तोला का दान रावण ने दिया हो।
जीव पत्नी से, पुत्र से, नौकर से सुख चाहता है। मगर उसी समय पत्नी, पुत्र, नौकर भी उससे सुख चाहते हैं। सभी मनुष्यों को सुख की गरीबी है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).