Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, गृहस्थ-जीवन- जिसका जीवन दिव्य होता है, वहीं मरने के बाद देवता बनता है। जिसका जीवन सादा है, वही साधु है। हम सब तुच्छ नहीं हैं, हम सब तो शुद्ध चैतन्यमय परमात्मा के अंश हैं, यह हमेशा याद रखना चाहिए। प्रभु को हमेशा साथ रखोगे, तभी जीवन सफल होगा। जिसका अधिकार सिद्ध होता है, उसे ईश्वर अपने आप बुलाते हैं।
पूरा परिवार एक साथ बैठकर प्रार्थना करे, यही गृहस्थ आश्रम का आनंद है। सत्कर्म की प्रेरणा देने के लिए ही बालकों के हाथ से सत्कर्म कराओ।यौवन में धीरे-धीरे संयम बढ़ाते हुए भक्ति करोगे तो प्रभु अवश्य मिलेंगे। परोपकार करते समय अभिमान न आ जाये इसका ध्यान रखो। भोगों से कभी तृप्ति नहीं होती। उनसे तो वासनाएँ बढ़ती ही जाती हैं और भोगने वाले का ही भक्षण कर जाती हैं।
वासना ऐसी भिखारिन है जो खिलाने वाले को ही खा जाती है। सुख भोगने की वासना ही बहुत दुःख देती है। वासना ही पुनर्जन्म का कारण है। विवेक और संयम से ही वासना शांत होती है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).