Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सत्संग के अमृतविन्द- लक्ष्मी गौड़, लक्ष्मीनारायण मुख्य स्वयं के हाथों सत्कर्म में प्रयुक्त होने वाला धन ही अपना है। पैसे के लिए प्रयत्न करो, पाप नहीं। जीवन में पैसा गौड़ है, परमात्मा मुख्य है। आप अधिक पाप करोगे तो भी अधिक पैसा मिलने वाला नहीं है। पाप का पैसा किसी को भी शांति नहीं देता। बहुत से लोग खूब पैसा कमाते हैं और भौतिक सुख भोगते हैं, किंतु उनमें आंतरिक शांति नहीं होती।
पैसा कमाना सरल है, उसका सदुपयोग करना कठिन है। थोड़ा धन घर-परिवार में खर्च हो और बाकी का प्रभु सेवा में काम आये तो लक्ष्मी प्रसन्न हो जाये। सदुपयोग के बिना संपत्ति अभिशाप बन जाती है। लक्ष्मी जीव भोग्य नहीं,ईशभोग्य है। पसीने से भीगा हुआ पैसा ही परमात्मा को प्यारा होता है। पसीना बहाकर कमाया हुआ धन ही सद्बुद्धि प्रदान करता है। लक्ष्मी को माँ मानकर सत्कर्म में लगायेंगे तो वह प्रसन्न होगी। यदि उपभोग की इच्छा से उसका दुरुपयोग करोगे तो वह दंड देगी, आप गरीब हो जाओगे।
धन के बजाय धर्म श्रेष्ठ है। धंधा करते समय हम भगवान को न भूलें। यह शरीर ही मेरा नहीं, तो फिर यह धन मेरा कैसे हो सकता है?यह भूलना नहीं। जिसकी बुद्धि सुवर्ण में है,वह रावण है। जिसकी बुद्धि सुकर्म में है वह राम है।धन का दुरुपयोग लक्ष्मी का अपमान है। विषयानन्द छोड़ोगे तभी भजनानन्द प्राप्त करोगे। प्रवृत्ति का विषयानन्द छोड़ेंगे, तभी निवृत्ति का नित्यानंद प्राप्त कर सकेंगे। चाय न मिलने पर जिसका सिर दुखने लगता है, वह वेदांत को क्या समझेगा?
जिसका चित्त संसार के सुख में रचा-पचा है, वह ब्रह्मचिंतन में कहां से लगेगा? जिसको पान सुपारी में ही रस आ रहा है, उसे हरिभक्ति में कहां से रस आयेगा? जिसके जीवन में भोग की प्रधानता है, वह भगवान को महत्व न देकर क्षुद्र जीवन जीता है। हम व्यसन के गुलाम बनने के लिए नहीं, परमात्मा के प्यारे बनने के लिए पैदा हुए हैं। पुत्र का विवाह हो और पुत्र बधु घर में आये तो वानप्रस्थी बनो। सत्कर्म और भगवान का भजन करो।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).