Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, तीर्थगुरु पुष्कर की महिमा- हम लोग सबसे पहले सम्पूर्ण लोकों के स्वामी जगतपति श्री भगवान को नमस्कार करते हैं। जो भगवान प्रधानतत्व (प्रकृति तत्व) के वेत्ता है तथा जगत की सृष्टि करने वाले हैं। जो लोकों के कर्ता हैं, लोकतत्त्व के ज्ञाता हैं। वह योग के वेत्ता हैं और उन्होंने ही योग को अपनाकर इस समस्त चराचर जीवों की सृष्टि की है।
उन्हीं ब्रह्मज्ञानी, सर्वज्ञ, समस्त लोकों में पूजित, महातेजस्वी भगवान ब्रह्मा हैं। जगत के उपादान कारण स्वरूप प्रकृति है, वह (प्रकृति ही) सदा चेतना चेतनात्मक महत्तत्व से लेकर महाभूत पर्यंत (समस्त प्राकृतिक तत्वों) की सृष्टि करते हैं।(उससे उत्पन्न हुए) हिरण्यमय ब्रह्माण्ड में ब्रह्मा जी की उत्तम सृष्टि हुई। यह ब्रह्माण्ड जल से आवृत है, उस जल के ऊपर तेज का आवरण है। वह तेज वायु के द्वारा आवृत है। वायु के ऊपर आकाश का आवरण है।
वह भूतादि (तामस) अहंकार से आवृत्ति है। भूतादि अहंकार महत्तत्व से आवृत्त है और उस महत्तत्व के ऊपर अव्यक्त (प्रकृति) का आवरण है। सभी लोकों की उत्पत्ति इस ब्रह्माण्ड में ही होती है। उसी से नदियों और पर्वतों की उत्पत्ति बतलाई गई है। जिनके द्वारा सम्पूर्ण जगत की सृष्टि हुई है और हम आपकी भी सृष्टि जिनके द्वारा हुई है। उन भगवान ब्रह्मा का दिव्य धाम पुष्कर है। हम सब जीव जगत के लिए पुष्करराज सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। कर्ण केवल सोने का दान करता था।
जब उसका शरीर पूरा हुआ, दान के प्रभाव से स्वर्ग गया। स्वर्ग में उसे खाने के लिए सोने की थाली में सोने की रोटी और सोना ही खाने के लिए दिया गया। कर्ण ने कहा सोना कैसे खाऊंगा? भगवान के पार्षदों ने कहा आपने केवल सोना ही दान दिया है, तो सोना ही खाने को मिलेगा। कर्ण ने किसी संत को भंडारे की तरफ संकेत किया था इसी से कर्ण की भूख मिटी। धर्म शास्त्रों में साधु-संतों के भंडारे की बड़ी महिमा का वर्णन है।
पुष्कर में संत सेवा, सत्कर्म, संत भंडारा का सम्पूर्ण धरती पर सबसे अधिक महिमा का वर्णन किया गया है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).