अनन्त गुना पुण्य फल की प्राप्ति कराने वाला होता है श्रीपुष्करराजजी में किया गया दान: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, दुष्करं पुष्करं दानं- दान की महिमा तो सर्वत्र है लेकिन पुष्कर में दान की बहुत अधिक महिमा है। धर्म शास्त्रों में धर्म के चार चरण बताये गये हैं, सत्य, तप, दया और दान।श्रीरामचरितमानसजी में भी पूज्य गोस्वामी  श्रीतुलसीदासजी महाराज लिखते हैं-
प्रगटचारि पद धर्म के, कलिमहुँ एक प्रधान।
जेन केन विधि दीन्हें दान करै कल्यान।।
अपने यहाँ चारयुग बताये गये हैं, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग।
1- सतयुग– सतयुग में धर्म चारों चरण पर स्थित रहता है। समाज में सत्य का साम्राज्य होता है, हर कोई सत्य बोलता है। सतयुग का ऐसा वातावरण होता है कि हर किसी के लिए तप आसान होता है, हर कोई तप भी करते हैं। सतयुग में दया का वातावरण भी इतनी उच्च कोटि का होता है कि हर कोई में दया भी रहती है और सतयुग में लोगों के जीवन में त्याग रहता है। सतयुग में दान धर्म का आचरण लोगों के लिए सहज होता है। सतयुग में धर्म पूर्ण रूप से विद्यमान होता है।
2- त्रेतायुग– त्रेतायुग में धर्म तीन चरण पर होता है – तप, दया और दान।
3- द्वापरयुग– द्वापरयुग में धर्म पूर्ण रूपेण दो चरण पर स्थित होता है, दया और दान।
4- कलियुग– कलियुग में धर्म केवल एक चरण पर स्थित होता है, जिसका नाम है दान। धर्म पूर्ण रूप से दान में स्थित होता है। कलियुग में सत्य बोलना कठिन है,  कलियुग में तप करना कठिन है, कलियुग में दया कर पाना भी कठिन है।कलियुग में धर्माचरण करने वाले श्रेष्ठ लोग दान का आश्रय करके धर्म का आचरण करते हैं।
धर्म का आचरण करने वाले को अपनी पुण्य कमाई में से कुछ भाग धर्म के लिये निकलना चाहिए। जिसे परोपकार, परमार्थ के कार्यों में लगाना चाहिए। धर्मशास्त्रों में लिखा है कि- सामान्य जगह किये गये दान की अपेक्षा तीर्थ में किये गये दान की सौ गुना अधिक महिमा है।श्रीपुष्करराजजी तीर्थ गुरु हैं, तीर्थ में किये गये दान की अपेक्षा तीर्थगुरु श्रीपुष्करराजजी में किया गया दान अनन्त गुना पुण्य फल की प्राप्ति कराने वाला होता है।
तुलसी पंछिन के पिये घटे न सरिता नीर।
धरम किए धन न घटे जो सहाय रघुवीर।।
तुलसी इस संसार में कर लीजै दो काम।
देने को टुकड़ों भलो लेने को हरि नाम।।
जगद्गुरु श्रीरामानन्दाचार्य भगवान कहते हैं-
राम भजन अरु साधू सेवा, जय जय रामानंद।।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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